Delhi: आरोपी ने पीड़िता को नशीला पदार्थ देने की बात से किया इनकार, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िता द्वारा यौन उत्पीड़न का विस्तृत विवरण देने पर केवल आंतरिक मेडिकल परीक्षण से इनकार करने से अभियोजन पक्ष के मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अदालत ने यह टिप्पणी दुष्कर्म के एक मामले में आरोपमुक्त करने की याचिका पर की जहां पीड़िता ने मेडिकल जांच से इनकार कर दिया था।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामले में जहां दुष्कर्म पीड़िता ने यौन उत्पीड़न का विस्तृत विवरण दिया है, वहां आंतरिक चिकित्सा परीक्षण से इनकार करने मात्र से आरोप तय करने के चरण में अभियोजन पक्ष के मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा की पीठ ने कहा कि आरोप तय करने के चरण में सीआरपीसी की धारा 161 के तहत यौन उत्पीड़न के विशिष्ट आरोपों का बयान कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त से अधिक है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी आंतरित चिकित्सा परीक्षण कराने से इनकार करने के पीड़िता के रुख के आधार पर दुष्कर्म सहित अन्य अपराध के मामले में आरोपमुक्त करने की मांग वाली याचिका पर की।
अभियोक्ता ने आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता उसका सहकर्मी था और उसने पेय पदार्थ में नशीला पदार्थ मिलाकर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए था। हालांकि, आरोपित ने दावा किया कि यदि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसके बयान को भी सही मान लिया जाए, तो भी दुष्कर्म का अपराध सीआरपीसी की धारा 164ए के अनुपालन के अभाव में स्थापित नहीं होता क्योंकि इसके तहत पीड़िता की चिकित्सा जांच अनिवार्य है।
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वहीं, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियोक्ता की चिकित्सा जांच की गई थी। यह भी तर्क दिया कि आंतरिक जांच से इनकार करना धारा 164ए का अनुपालन न करने के बराबर नहीं है। पीठ ने अभियोजन पक्ष से सहमति जताते हुए माना कि याचिकाकर्ता का तर्क यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोप तय करने के चरण को नियंत्रित करने वाले स्थापित कानूनी सिद्धांतों के विपरीत है।
उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने आरोपित को आरोप मुक्त करने से इन्कार कर दिया। हालांकि, पीठ ने माना कि प्रथम दृष्टया भी ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे पता चले कि अभियुक्त ने अभियोक्ता को कोई बेहोश करने वाला पदार्थ दिया था।
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