ठाकुर दास मिगलानी ने बयां किया 1947 का वो दर्द, आज भी भर आती हैं आंखें; 'काफिला' पुस्तक के विमोचन का था मौका
विभाजन की त्रासदी आज भी बुजुर्गों की आंखों में नमी लाती है। काफिला ए झंगी फैमिली पार्टिशन मेमायर पुस्तक में विभाजन के दर्द को दर्शाया गया है। लेखक सुमंत बत्रा ने अपने परिवार के विस्थापन कठिनाइयों और पुनर्निर्माण की यात्रा को व्यक्त किया है। यह पुस्तक रिश्तों की मजबूती और बेहतर कल की उम्मीद की कहानी है। विभाजन की स्मृतियों को नई पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। देश के विभाजन की त्रासदी आज भी बुजुर्गों की आंखों में नमी भर देती है। 1947 में जब लाखों लोग अपने वतन और घर को छोड़कर केवल जान बचाने के लिए निकल पड़े थे। उस दौरान कहीं लाशों से लदी ट्रेनें तो कहीं शिविरों में भूख-प्यास और असुरक्षा से जूझते लोग।
यह दर्द ‘काफिला ए झंगी फैमिली पार्टिशन मेमायर’ पुस्तक के विमोचन समारोह के दौरान 93 वर्षीय ठाकुर दास मिगलानी ने बयां किया। इसके अलावा उन्होंने बताया कि बत्रा परिवार के साथ विभाजन के दौरान वह सब कुछ छोड़कर भारत आए थे।
पुस्तक के लेखक सुमंत बत्रा ने कहा कि यह कृति केवल उनके पूर्वजों की स्मृतियों का संकलन नहीं है बल्कि साहस, संघर्ष और उम्मीद का जीवंत दस्तावेज है। उन्होंने अपने परिवार और समुदाय द्वारा झेले गए विस्थापन, कठिनाइयों और पुनर्निर्माण की यात्रा को तस्वीरों और संस्मरणों के माध्यम से शब्द दिया है।
पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह लोग अपना सब कुछ खोकर भी नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने के लिए मजबूर हुए। सिर पर छत, रोजगार और सुरक्षा के लिए अजनबी राज्यों में जाकर किस तरह संघर्ष किया। यह इसमें संवेदनशील ढंग से दर्ज है।
यह भी पढ़ें- Independence Day: सेना और पुलिस की निगरानी में दिल्ली, जमीन से आसमान तक कड़ा पहरा; छावनी में तब्दील राजधानी
सुमंत बत्रा ने कहा कि काफिला केवल दर्द की कहानी नहीं है। यह रिश्तों की मजबूती, हिम्मत और बेहतर कल की उम्मीद का सफर है। उनके अनुसार विभाजन की स्मृतियां बुजुर्ग पीढ़ी के अनुभव और इतिहास का अहम हिस्सा हैं। जिन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है, ताकि वह समझ सकें कि आज की आजादी और स्थिरता कितने बड़े बलिदानों से मिली है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।