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    क्या क्षेत्राधिकार से बाहर का कानून बना सकती है दिल्ली विधानसभा ? हाई कोर्ट ने सवाल उठाते हुए जारी किया नोटिस

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 08:35 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के बाहर स्थित कॉलेजों को इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से संबद्धता देने के कानून पर सवाल उठाया है। अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार सहित यूजीसी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या दिल्ली विधानसभा ऐसा कानून बना सकती है जो अन्य राज्यों में कार्य करे।

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    दिल्ली के बाहर के काॅलेजों को आईपी यूनिवर्सिटी से संबद्धता संबंधी कानून पर हाई कोर्ट ने उठाया सवाल।

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (जीजीआईपीएयू) को दिल्ली के बाहर स्थित काॅलेजों को संबद्धता प्रदान करने की अनुमति देने का कानून पारित करने के लिए दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को सवाल उठाया।

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    अधिवक्ता शशांक देव सुधि की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने पूछा कि क्या दिल्ली विधानसभा ऐसा कानून बना सकती है ?

    जो अन्य राज्यों में क्षेत्राधिकार से बाहर कार्य करे। अदालत ने याचिका पर केंद्र व दिल्ली सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल कर का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।

    अदालत ने पूछा कि आप अन्य राज्यों की विधायी शक्तियों का अतिक्रमण कर रहे हैं ? अदालत ने पूछा क्या कल, दिल्ली पुलिस इन स्थानों पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकती है?

    अदालत ये सवाल तब उठाए जब प्रतिवादियों की तरफ से पेश हुए वकील ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि दिल्ली के बाहर के काॅलेजों को संबद्धता उन राज्यों से अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही दी गई है और किसी भी छात्र या अन्य हितधारक ने कोई शिकायत नहीं की है।

    उन्होंने यह भी कहा कि जनहित याचिका कानून तय करने के लिए सही मामला नहीं हो सकता है। इसके जवाब में पीठ ने कहा कि अदालत तय करेगी कि जनहित याचिका में विधायी शक्तियों का अतिक्रमण है या नहीं क्योंकि यह मुद्दा जनहित में है।

    अदालत ने प्रतिवादियों की तरफ से पेश हुए वकील से पूछा कि अगर राज्य की कार्यपालिका अपनी विधायी शक्तियों का ध्यान नहीं रखती है, तो क्या यह मुद्दा जनहित याचिका में नहीं उठाया जा सकता?

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि किसी कालेज की संबद्धता केवल एक मंत्रिस्तरीय कार्य नहीं है, बल्कि इसके साथ बड़ी जिम्मेदारियां और विशेषाधिकार जुड़े हैं।

    अदालत ने यह टिप्पणी वकील शशांक देव सुधी की जनहित याचिका पर की, जिसमें में जीजीएसआईपीयू को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सीमाओं से बाहर काॅलेजों के संचालन या संबद्धता से रोकने की मांग की है।

    वकील शशांक देव सुधी ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में शामिल हरियाणा और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र के काॅलेजों को संबद्धता प्रदान करके विश्वविद्यालय अपने मूल कानून के तहत निर्धारित क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन कर रहा है।

    इतना ही नहीं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बाध्यकारी मानदंडों का भी उल्लंघन किया जा रहा है। याचिका में कहा गया कि गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय अधिनियम-1998 की धारा- चार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 का स्पष्ट उल्लंघन है।

    जिसमें कहा गया है कि एक राज्य विधानमंडल केवल अपने राज्य के लिए ही कानून बना सकता है। याचिका में कहा गया कि जीजीएसआईपीयू की धारा-चार में कहा गया है कि विश्वविद्यालय अपनी शक्तियों का प्रयोग एनसीआर में करेगा।

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