तब्लीगी जमात मामले में 70 भारतीयों को बड़ी राहत, हाईकोर्ट में दावा साबित नहीं कर सकी दिल्ली पुलिस
दिल्ली हाई कोर्ट ने 2020 में तब्लीगी जमात से जुड़े 70 भारतीय नागरिकों पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि आरोपपत्रों में ऐसा कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने महामारी फैलाई या नियमों का उल्लंघन किया। अदालत ने यह भी कहा कि इसी तरह के मामलों में अन्य अभियुक्तों को भी बरी किया जा चुका है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। वर्ष 2020 में कोराना महामारी के दौरान तब्लीगी जमात से जुड़े 70 भारतीय नागरिकों पर आरोपपत्र में लगाए गए आरोपों का दिल्ली पुलिस अदालत में बचाव नहीं कर सकी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि आरोपपत्रों में प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के साथ महामारी रोग अधिनियम-1897 की धारा-तीन व आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 की धारा-51 के तहत आरोपितों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं बनता है।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि पूरे आरोपपत्र में इस बात का जरा भी जिक्र नहीं है कि कोई भी याचिकाकर्ता कोरोना महामारी से संक्रमित था या फिर वे मरकज से बाहर निकले थे या उनसे कोरोना महामारी फैलने की संभावना थी। अदालत ने कहा कि इस बात का एक भी दावा नहीं है कि उन्होंने निगरानी कर्मियों को कोई सहायता नहीं दी।
पीठ ने यह भी कहा कि यह भी ध्यान देने योग्य है कि कोरोना महामारी की अवधि के दौरान उपरोक्त धाराओं के तहत देश भर के विभिन्न न्यायालयों में जिन आरोपितों के खिलाफ प्राथमिकी हुई या आरोप पत्र दाखिल किए गए उन सभी अभियुक्तों को बरी किया जा चुका है। इन आरोपपत्रों को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
वहीं, गुरुवार को अदालत द्वारा सुनाए गए निर्णय की प्रति शुक्रवार को उपलब्ध हो सकी। उक्त टिप्पणी करते हुए अदालत ने 70 भारतीय नागरिकों के खिलाफ हुई 16 प्राथमिकी को हाईकोर्ट ने रद कर दिया। 70 भारतीयों को आरोपित बनाने वाली कुल 16 प्राथमिकियों को अदालत में चुनौती दी गई थी। आरोपितों पर आरोप था कि उन्होंने तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए विदेशियों को शरण दी थी।
दिल्ली पुलिस ने पहले मार्च 2020 के जमावड़े में शामिल विदेशी लोगों को ठहराने के आरोप में प्राथमिकी को रद करने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा था कि आरोपित स्थानीय निवासियों ने महामारी के प्रसार को रोकने के लिए जारी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए निजामुद्दीन मरकज में आए लोगों को शरण दी थी।
यह भी आरोप लगाया था कि 24 मार्च 2020 को केंद्र सरकार ने देशव्यापी लाकडाउन कर दिया था। इस दौरान शारीरिक दूरी के विदेशी नागरिकों को स्थानीय मस्जिद में रहने की अनुमति देकर आरोपितों ने धार्मिक स्थलों को बंद करने के दिल्ली सरकार के आदेश का भी उल्लंघन किया था। यह भी तर्क दिया था कि महामारी की पहली लहर के दौरान तब्लीगी जमात से जुड़े 190 से अधिक विदेशियों को पनाह दी थी। आरोपितों पर भारतीय दंड संहिता, महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम के विभिन्न प्रविधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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वहीं, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्राथमिकी या आरोपपत्र में ऐसा कोई दस्तावेज दर्ज नहीं है, जिससे पता चले कि वे कोरोना महामारी से संक्रमित थे। ऐसे में उन पर महामारी रोग अधिनियम-1897 के तहत संक्रमण फैलाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता।याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि उनके खिलाफ निराधार आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था।
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