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    दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला, ट्रांसफर से पहले सुरक्षित फैसले सुनाएं, सभी ट्रायल कोर्ट न्यायाधीशों को निर्देश

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 08:22 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी के सभी ट्रायल कोर्ट न्यायाधीशों को निर्देश दिया है कि यदि किसी न्यायिक अधिकारी का ट्रांसफर हो गया हो तो ट्रांसफर से पहले सुरक्षित फैसलों को अधिकतम तीन सप्ताह में सुनाया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों को नए न्यायाधीशों के सामने दोबारा नहीं सुना जाएगा। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि इस आदेश का पालन किया जाए।

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    स्थानांतरण से पहले रिजर्व किए गए मामलों में दो से तीन हफ्ते में सुनाया जाए फैसला

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी के सभी ट्रायल कोर्ट न्यायाधीशों को निर्देश दिया है कि यदि किसी न्यायिक अधिकारी का स्थानांतरण हो गया हो, तो स्थानांतरण से पहले जिन मामलों में आदेश या फैसला सुरक्षित किया गया है, उन्हें अधिकतम दो से तीन सप्ताह के भीतर सुनाया जाए। ऐसे मामलों को नए न्यायाधीशों के सामने दोबारा नहीं सुना जाएगा।

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    अधिकतम तीन सप्ताह के भीतर सुनाएं

    न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा की पीठ ने स्पष्ट किया कि स्थानांतरण सूची के साथ जुड़ा नोट यह सुनिश्चित करता है कि संबंधित न्यायिक अधिकारी, चाहे उनकी नई नियुक्ति कहीं भी हो, वे अपने द्वारा सुरक्षित किए गए फैसले को तय तिथि या अधिकतम तीन सप्ताह के भीतर सुनाएं।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि संबंधित न्यायिक अधिकारी को स्थानांतरण से पहले ऐसे सभी मामलों की सूची तैयार कर जिला एवं सत्र न्यायाधीश को सौंपनी होगी, जिनमें फैसला सुरक्षित रखा गया है। इसके बाद जिला न्यायाधीश यह सुनिश्चित करेंगे कि उक्त अधिकारी तय समय सीमा में निर्णय सुनाएं।

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    प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में शामिल किया जा सके

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह आदेश सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को भेजा जाए, ताकि वे अपने-अपने न्यायिक अधिकारियों को इसका अनुपालन सुनिश्चित कराएं। साथ ही, इसकी एक प्रति दिल्ली न्यायिक अकादमी के निदेशक (अकादमिक) को भी भेजी जाएगी ताकि इसे प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में शामिल किया जा सके।

    यह आदेश उस याचिका की सुनवाई के दौरान आया जिसमें एक आरोपित ने अपने दोषसिद्धि के खिलाफ अपील में 90 दिन की देरी को माफ करने से इन्कार किए जाने को चुनौती दी थी। अदालत ने माना कि इस मामले में दोनों न्यायिक अधिकारियों से चूक हुई है। पहले न्यायाधीश को खुद फैसला सुनाना था, और उत्तराधिकारी न्यायाधीश को इसे दोबारा नहीं सुनना चाहिए था।

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