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    Delhi High Court: अतिक्रमण कर अवैध निर्माण करने वाले नहीं कर सकते अधिकार का दावा, दिल्लीवासी बाढ़ मुक्त दिल्ली के हकदार

    Updated: Wed, 07 May 2025 07:50 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने तैमूर नगर में नाले के प्रवाह को बाधित करने वाले अतिक्रमणकारियों को कड़ा संदेश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करके बनाए गए अवैध निर्माणों पर अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता। दिल्लीवासियों को बाढ़ मुक्त शहर का हक है।

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    तैमूर नगर नाले का हाल, नाले के दोनों और अतिक्रमण कर निर्माण कर लिया गया है।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: तैमूर नगर नाले के बहाव को बाधित करने वाले अतिक्रमणकारियों को दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त संदेश दिया है।

    दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर अवैध निर्माण करने वालों को अधिकारों का दावा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    पीठ ने कहा, आगामी मानसून को देखते हुए नाले को चौड़ा करना जरूरी

    न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह व न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि वैध रूप से रह रहे दिल्लीवासी बाढ़ मुक्त दिल्ली के हकदार हैं। मानसून को देखते हुए नाले को चौड़ा करना जरूरी है।

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    अदालत ने यह टिप्पणी तैमूर नगर में चल रहे ध्वस्तीकरण अभियान के खिलाफ दायर आवेदन पर की। अनधिकृत कब्जा करने वालों को राहत देने से पीठ ने इन्कार कर दिया।

    अवैध रूप से रहने वाले रैन बसेरों में रहने को जाने के लिए स्वतंत्र

    पीठ ने कहा कि अवैध रूप से रह रहे लोग अस्थायी तौर पर रैन बसेरों में रहने को जाने के लिए स्वतंत्र हैं। मामले पर आगे की सुनवाई 26 मई को होगी।

    सुनवाई के दौरान पेश की गई तस्वीरों को देखने के बाद अदालत ने पाया कि आवेदकों ने सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत रूप से पक्का निर्माण कर लिया है। इसके कारण नाले का प्रवाह बाधित हो रहा है।

    DDA ने कहा, कोई भी आवेदक पुनर्वास का पात्र नहीं 

    अदालत ने यह भी कहा कि आवेदकों में से किसी के पास भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है और यह साफ है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हैं।

    डीडीए ने कहा कि कोई भी आवेदक पुनर्वास का पात्र नहीं है, क्योंकि वे दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति- 2015 के अनुसार मान्यता प्राप्त झुग्गी समूहों का हिस्सा नहीं हैं।

    रैन बसेरा की सुविधा पर डूसिब के रुख पर अदालत ने जताई आपत्ति

    सुनवाई के दौरान दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) ने कहा कि रैन बसेरों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दिया जाता है, इसलिए सभी आवेदकों के परिवारों को समायोजित करना संभव नहीं हो सकता है।

    अदालत ने डूसिब के इस बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि डूसिब आम तौर पर इन मामलों में असहयोग का रवैया अपना रहा है।

    यह सुनिश्चित करना डूसिब की जिम्मेदारी होगी कि इन परिवारों को पर्याप्त रूप से रैन बसेरों की सुविधा मिले। ऐसा न करने पर डूसिब अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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