'भाई-बहनों के बीच के रिश्ते को मजबूत करने के लिए निरंतर बातचीत जरूरी', दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों की यह टिप्पणी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक कलह के कारण अलग रह रहे बच्चों के मामले में कहा कि भाई-बहनों के बीच रिश्ते को मजबूत रखने के लिए बातचीत जरूरी है। अदालत ने मुलाकात के अधिकार को निलंबित करने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इससे बच्चों का हित प्रभावित हो सकता है। अदालत ने अंतरिम व्यवस्था जारी रखने का निर्देश दिया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। वैवाहिक कलह के कारण अलग रहने को मजबूर बच्चों से जुड़े एक मामले का निपटारा करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि भाई-बहनों के बीच के रिश्ते को मजबूत करने के लिए निरंतर बातचीत की जरूरत है।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि बेटे का अपनी मां और बहन के साथ संवाद उनके बीच एक मजबूत रिश्ता बनाने के लिए बेहद जरूरी है।
मुलाकात के अधिकार को निलंबित करने की व्यक्ति की याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि अंतरिम मुलाकात व्यवस्था को निलंबित करना बेटी और बेटे के सर्वोत्तम हित और कल्याण के लिए ठीक नहीं हो सकता। पीठ ने साथ ही लगभग एक साल से चल रही अंतरिम व्यवस्था को अगल सुनवाई तक जारी रखने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पारिवारिक अदालत ने मां को दोनों बच्चों की कस्टडी का हकदार पाया, जबकि सिफ अंतरिम आदेश के कारण ही बेटा पिता के साथ रह रहा है। पीठ ने इस पर और कुछ कहने से इन्कार करते हुए कहा कि अपील पर 28 अक्टूबर को सुनवाई होनी है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी दो बच्चों के पिता द्वारा एक पारिवारिक न्यायालय द्वारा बच्चों से मिलने के अधिकार को निलंबित करने के लिए दायर याचिका का निपटारा करते हुए की। व्यक्ति ने बच्चों की अंतरिम कस्टडी उनकी मां को और बच्चों से मिलने का अधिकार उसे देने से जुड़े पारिवारिक न्यायालय को चुनौती दी थी।
बेटी स्वेच्छा से अपनी मां के साथ रहने लगी, जबकि बेटा पिता के साथ कहीं और रहने लगा। पीठ के साथ बातचीत के दौरान, बेटी ने कहा कि वह अपनी मां के साथ रहना चाहती है, जबकि बेटे ने अपनी बहन और मां से बातचीत करने में अनिच्छा जताई।

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