SC/ST एक्ट के तहत मुआवजा योजना का दुरुपयोग करने पर दिल्ली हाई कोर्ट की सख्ती, शिकायतकर्ता पर की कार्रवाई
दिल्ली हाई कोर्ट ने मुआवजा योजना का गलत इस्तेमाल करने पर शिकायकर्ता पर जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने अपनी मर्जी से समझौता किया था जिसके चलते प्राथमिकी रद हुई। यह भी बताया कि शिकायतकर्ता ने पहले भी इसी अधिनियम के तहत मुआवजा प्राप्त किया था जिससे उसकी वर्तमान याचिका संदिग्ध है। अदालत ने वादी को दो सप्ताह में जुर्माना भरने का आदेश दिया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 के तहत पीड़ित मुआवजा योजना का दुरुपयोग करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने शिकायतकर्ता पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।
इससे पहले शिकायतकर्ता को राहत देने से एकल पीठ ने इनकार कर दिया है। असल में शिकायतकर्ता एक लाख रुपये की जगह महज 10 रुपये ही मुआवजा मिलने की बात करते हुए केस दायर किया था।
एकल पीठ से राहत नहीं मिलने पर उस निर्णय को शिकायतकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर इस याचिका खारिज कर दिया गया।
इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि शिकायकर्ता ने अपनी इच्छा से अभियुक्त के साथ समझौता किया था और इसके कारण प्राथमिकी रद कर दी गई थी।
अदालत ने नाेट किया कि एकल पीठ ने अतिरिक्त मुआवजा पाने का हकदार नहीं होने के संबंध में विस्तृत कारण बताए थे।
शिकायकर्ता ने 2014 में भी इसी व्यक्ति के खिलाफ अधिनियम के तहत एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसके बाद उसने 2.40 लाख रुपये का मुआवजा प्राप्त किया था।
पीठ ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि वर्तमान मामले में शिकायर्ता ने प्रतिवादी के खिलाफ उन्हीं धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
ये उदाहरण अपीलकर्ता के बयान की प्रामाणिकता और सत्यता पर गंभीर संदेह पैदा करते हैं। एकल पीठ ने कहा था कि वादी ने आरोपित से समझौता कर लिया है, ऐसे में वह योजना के तहत लाभ पाने का हकदार नहीं है।
अपीलकर्ता ने 2019 में फिर इसी अधिनियम के तहत एक प्राथमिकी कराई थी, जिसके तहत गैर-अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोग अपने ऊपर अत्याचार होने पर मुआवजे के हकदार हैं।
हालांकि, मामले में आरोपपत्र अक्टूबर 2019 में दायर किया गया था और शिकायकर्ता ने मुआवजे के लिए एसीपी और संभागीय आयुक्त से बार-बार अनुरोध किया था। अधिकारियों से जवाब नहीं मिलने पर अपीलकर्ता ने एकल पीठ के समक्ष याचिका दायर की।
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