'एक प्रभावी एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन में देरी बर्दाश्त नहीं...' रैगिंग से बढ़ती आत्महत्याओं पर हाई कोर्ट ने जताई चिंता
दिल्ली हाई कोर्ट ने छात्रों की आत्महत्याओं पर चिंता जताते हुए एंटी रैगिंग हेल्पलाइन की जरूरत बताई है। कोर्ट ने कहा कि रैगिंग रोकने के लिए मजबूत कार्यक्रम जरूरी हैं। अमन सत्य काचरू ट्रस्ट की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सेंटर फॉर यूथ को दिए टेंडर को रद्द करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए कुशल कार्यक्रम बनाने होंगे।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक प्रभावी एंटी रैगिंग हेल्पलाइन की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया में देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती, वरना हम इस अभिशाप के कारण और अधिक युवाओं की जान गंवा देंगे।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने उच्च शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य और छात्रों की आत्महत्या के मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश का भी हवाला देते हुए तत्काल कदम उठाने का आह्वान किया।
अदालत ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए मजबूत, कुशल और प्रभावी कार्यक्रम स्थापित करने होंगे। अदालत ने उक्त टिप्पणी अमन सत्य काचरू ट्रस्ट द्वारा दायर दो याचिकाओं पर विचार करते हुए की। इसमें राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम के प्रबंधन के संबंध में विभिन्न राहत की मांग की गई थी।
यह कार्यक्रम मूल रूप से ट्रस्ट द्वारा 2012 से चलाया जा रहा था और अप्रैल 2022 से इसे तब बंद कर दिया गया था, जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सेंटर फाॅर यूथ सोसायटी को ठेका देने के लिए एक नया टेंडर जारी किया था।
याचिका में ट्रस्ट ने एंटी-रैगिंग कार्यक्रम के प्रबंधन और निगरानी के लिए सेंटर फाॅर यूथ को दिए गए टेंडर को रद करने की मांग की थी। एक अन्य याचिका में यूजीसी को उसके नोटिस, विज्ञापन और टेंडर को रद करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
2009 में प्रो. राजेंद्र काचरू ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग को खत्म करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम नामक एक विस्तृत योजना तैयार की थी। इसके चार प्रमुख तत्व थे।
एक 24 घंटे राष्ट्रव्यापी रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन, प्रवेश के समय ऑनलाइन हलफनामों के माध्यम से एकत्रित छात्र और अभिभावकों के विवरण का एक डेटाबेस, देश भर के लगभग 50 हजार काॅलेजों की रैगिंग विरोधी समितियों और अधिकारियों का एक डेटाबेस, और एक काॅल सेंटर-आधारित प्लेटफार्म के माध्यम से अनुपालन और निगरानी तंत्र की व्यवस्था करना था।
शीर्ष अदालत ने योजना के कार्यान्वयन का आदेश दिया और निगरानी का कार्य एक गैर-सरकारी एजेंसी को सौंपने का आदेश दिया। इसके परिणामस्वरूप यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के लिए यूजीसी विनियम- 2009 तैयार किया।
प्रोफेसर राजेंद्र ने यह मानते हुए कि कार्यक्रम से दूरी बना ली कि उनका कार्यकाल पूरा हो गया। फिर कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए चार कंपनियों को नियुक्त किया गया। हालांकि, उनकी विफलता की आलोचना होने के बाद 2012 से, प्रोफेसर को लगातार इस कार्य के लिए नियुक्त किया गया।
शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार नामांकन के माध्यम से और उसके बाद 2013 में एक प्रतिस्पर्धी चयन प्रक्रिया के माध्यम से। हालांकि, जून 2021 में उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई।
इस पर यूजीसी ने कहा था कि उनका नामांकन वापस लेकर एक नया टेंडर जारी किया जाएगा। दिसंबर 2021 में यूजीसी ने एंटी-रैगिंग कार्यक्रम के प्रबंधन और निगरानी के लिए एक नया टेंडर जारी किया और इसका ठेका सेंटर फाॅर यूथ को दिया गया।
उक्त टेंडर के खिलाफ ट्रस्ट की याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान जून-2024 में यूजीसी द्वारा एक नया टेंडर जारी किया गया था। ट्रस्ट का तर्क था कि जून 2024 का टेंडर मूलतः दिसंबर 2021 के टेंडर का विस्तार था, और जब तक इस पर रोक नहीं लगाई जाती, तब तक उसकी याचिका में चुनौती निष्फल हो जाएगी।
हालांकि, अदालत ने सेंटर फाॅर यूथ द्वारा अनुबंध के अंतिम चरण में किए जा रहे कार्य पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि अदलात को विश्वास है कि एक बड़े समूह को प्रभावित करने वाले रैगिंग विरोधी कार्यक्रम पर नेशनल टास्क फोर्स द्वारा विचार किया जाएगा।
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