Anti-Sikh Riot के पीड़ित को DVCS के तहत मुआवजे से हाई कोर्ट का इनकार, कहा- पहले ही मिल चुका एक अन्य योजना का लाभ
दिल्ली हाई कोर्ट ने सिख विरोधी दंगा मामले में पीड़ित को मुआवजा देने से इनकार करते हुए कहा कि दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना (डीवीसीएस) को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि डीवीसीएस मुआवजा केवल उन्हीं मामलों में दिया जा सकता है जहां पीड़ितों को अन्य सरकारी मुआवजा योजनाओं के तहत पहले से ही पैसा नहीं मिला हो। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सिख विरोधी दंगे से जुड़े मामले में पीड़ित को राहत देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि Delhi Victim Compensation Scheme (DVCS) को पूर्वव्यापी (Retrospective) प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता।
पीड़ित की मुआवजे की मांग खारिज करते हुए अदालत ने कानूनी स्थिति स्पष्ट की। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यानाथन शंकर की पीठ ने कहा कि DVCS मुआवजा केवल उन्हीं मामलों में दिया जा सकता है, जहां पीड़ितों को अन्य मुआवजा योजनाओं का लाभ न मिला हो।
अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 357ए या डीवीसीएस के प्रविधानों को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से मुआवजे की मांग करने वाले पुराने दावों को उठाने का द्वार खुल जाएगा, फिर चाहे वह योजना शुरू होने से ठीक पहले हुई किसी घटना के लिए ही क्यों न हो।
मुआवजे के दावे को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता बलजीत कौर ने एक हलफनामे में कहा था कि दंगों में उनके पिता अवतार सिंह की मृत्यु के लिए सरकार से कुल 11.90 लाख रुपये पहले ही उनके परिवार को मिल चुके थे।
वरिष्ठ वकील व न्याय मित्र सुमीत वर्मा ने तर्क दिया कि सिंह का परिवार डीवीसीएस के तहत अतिरिक्त मुआवजे का हकदार है। हालांकि, पीठ ने कहा कि यह घटना वर्ष 1984 में घटी और तब से कई योजनाएं शुरू की गई हैं और बाद में दिल्ली सरकार सहित राज्य सरकारों द्वारा इन्हें अपनाकर लागू किया था।
इतना ही नहीं सरकार ने पीड़ितों को संपत्ति के नुकसान और क्षति की प्रतिपूर्ति के लिए अतिरिक्त पहल की हैं। हालांकि, पीठ ने कहा अगर किसी पीड़ित को योजना के तहत मुआवजा नहीं मिला है तो अदालत उसे अपना दावा दायर करने से नहीं रोकेगा।
पीठ ने निर्देश दिया कि ऐसे दावों का अधिकारियों द्वारा प्राप्ति के 16 सप्ताह की अवधि के भीतर सत्यापन किया जाए और स्वीकृत होने पर भुगतान आठ सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाए।
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