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    दिल्ली में भीषण गर्मी का असर असंगठित श्रमिकों की कमाई पर, ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट में खुलासा

    Updated: Thu, 01 May 2025 10:55 PM (IST)

    ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में भीषण गर्मी का असर असंगठित श्रमिकों की कमाई पर पड़ रहा है। तापमान में वृद्धि से उनकी आय में 19% तक की गिरावट आ सकती है जो मौसमी घटनाओं से श्रमिक ज्यादा प्रभावित हो रहे है। फुटपाथ विक्रेताओं की दैनिक आमदनी में भी कमी आई है और चिकित्सा खर्च बढ़ गया है। मजदूर संगठनों ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी चिंता व्यक्त की।

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    मौसमी घटनाओं से श्रमिक ज्यादा प्रभावित : रिपोर्ट

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर ग्रीनपीस इंडिया ने त्रिवेणी कला संगम में कार्यक्रम का आयोजन किया। संगठन की ओर से ‘ग्राउंड जीरो: दिल्ली‘ शोध रिपोर्ट भी पेश की गई। इसमें सामने आया कि गर्मियों के महीनों में फुटपाथ विक्रेता को भारी उत्पादकता घाटा और स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है।

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    रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से असंगठित श्रमिकों की कमाई में 19 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। वहीं, दोपहर की असहनीय गर्मी और घटते व्यापार के कारण यह नुकसान 40 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। साथ ही, चिकित्सा खर्च में करीब 14 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।

    दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों के मजदूर संगठन ने लिया हिस्सा

    रिपोर्ट में दावा किया है कि जहां पहले फुटपाथ विक्रेता की दैनिक आमदनी औसतन एक हजार रुपये थी, अब जलवायु संकट और बाजार की अस्थिरता के कारण यह 300 से 1200 रुपये के बीच है। कार्यक्रम में दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों के मजदूर संगठन ने हिस्सा लिया।

    वहीं, चरम मौसमी घटनाओं को लेकर अपनी मांगों को व्यक्त करते हुए ‘साडीज फार सोलिडैरिटी नामक पहल के तहत साड़ियों पर संदेश लिखे। यह संदेश ब्राजील के बेलेम में प्रस्तावित 30वीं संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप30) में प्रस्तुत किए जाएंगे।

    तापमान बढ़ने से ज्यादा नुकसान असंगठित श्रमिकों का

    इस दौरान कार्यक्रम में ‘वर्कर्स कलेक्टिव फार क्लाइमेट जस्टिस-साउथ एशिया की शुरुआत की गई। ग्रीनपीस इंडिया की जलवायु और ऊर्जा अभियानकर्ता अमृता एस नायर ने कहा कि जब तापमान बढ़ता है, तो नुकसान कंपनियों को नहीं, बल्कि सड़कों पर काम करने वाले असंगठित श्रमिकों को होता है। इनके पास अनुकूलन के लिए न बुनियादी ढांचा और न कोई सामाजिक सुरक्षा है।

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