Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Court News : मानहानि मामले में मेधा पाटकर को हाई कोर्ट से झटका, निचली अदालत का फैसला बरकरार, दी एक राहत

    Updated: Tue, 29 Jul 2025 05:19 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की मानहानि मामले में मेधा पाटकर को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। यह मामला वर्ष 2000 का है जब सक्सेना गुजरात में एक संगठन के अध्यक्ष थे। अदालत ने पाटकर को परिवीक्षा पर रिहा करने के फैसले को बरकरार रखते हुए हर तीन महीने में ट्रायल कोर्ट में पेश होने की शर्त में संशोधन किया है।

    Hero Image
    वीके सक्सेना द्वारा दायर मामले में मेधा पाटकर को दोषी ठहराने मामला।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की मानहानि से जुड़े मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दोषी करार देने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है। यह मामला वर्ष 2000 का है, तब वीके सक्सेना गुजरात के एक संगठन के अध्यक्ष थे। अदालत ने कहा कि वीके सक्सेना द्वारा दायर मामले में पाटकर को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालतों के फैसलों में कोई अवैधता नहीं थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं

    इसके साथ ही अदालत ने पाटकर को परिवीक्षा पर रिहा करने के अपीलीय अदालत के फैसले को भी बरकरार रखा। हालांकि, अदालत ने पाटकर को राहत देते हुए परिवीक्षा की उस शर्त में संशोधन किया जिसके तहत उन्हें हर तीन महीने में ट्रायल कोर्ट में पेश होना पड़ता था। पीठ ने कहा कि वह ऑनलाइन या फिर किसी अधिवक्ता के माध्यम से वह अदालत में पेश हो सकती हैं। अदालत ने कहा कि अन्य सभी शर्तों में इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

    यह भी पढ़ें- 'मुझे अंग्रेजी नहीं आती'- कोर्ट में ADM का कबूलनामा, हाई कोर्ट का सवाल- क्या ऐसे अफसर चला सकते हैं शासन?

    क्या है पूरा मामला?

    यह पूरा मामला वर्ष 2000 का है जब नेशनल काउंसिल आफ सिविल लिबर्टीज नामक संगठन के वीके सक्सेना अध्यक्ष थे। उन्होंने 2000 में पाटकर के नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया था। यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध करता था। इस विज्ञापन का शीर्षक था 'सुश्री मेधा पाटकर और उनके नर्मदा बचाओ आंदोलन का असली चेहरा'।

    इस विज्ञापन के प्रकाशन के बाद पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। इसमें उन्होंने वीके सक्सेना पर कई आरोप लगाते हुए एक प्रेस नोट जारी किया था। प्रेस नोट की रिपोर्टिंग के बाद सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद की एक अदालत में पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया।

    10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश

    सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 2003 में यह मामला दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था। मई-जुलाई 2024 में पाटकर को इस मामले में दोषी ठहराया गया और मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें पांच महीने की जेल की सजा सुनाई और सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

    यह भी पढ़ें- वक्फ बोर्ड भर्ती घोटाला की सुनवाई में कोर्ट ने कहा, भाई-भतीजावाद भी भ्रष्टाचार, अमानतुल्लाह खान समेत 10 पर आरोप तय