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    'नागरिकों के अधिकारों को मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता सीमित', हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

    By Vineet Tripathi Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Tue, 01 Apr 2025 09:23 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि वैध OCI कार्ड रखने वाले प्रवासी भारतीय नागरिकों के अधिकारों को मनमाने ढंग से सीमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि नागालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में अनधिकृत मिशनरी गतिविधियों में शामिल OCI कार्ड धारक को निर्वासित करने और काली सूची में डालने में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

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    प्रवासी भारतीय नागरिक के अधिकारों को मनमाने ढंग से सीमित नहीं किया जा सकता। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड की वैधता से जुड़े मामले में अहम टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि वैध ओसीआई कार्ड रखने वाले प्रवासी भारतीय नागरिक के अधिकारों को मनमाने ढंग से सीमित नहीं किया जा सकता।

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    जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि नगालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में अनधिकृत मिशनरी गतिविधियों में शामिल ओसीआई कार्ड धारक को निर्वासित करने और काली सूची में डालने में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि जॉन रॉबर्ट रतन तृतीय को आरोपों के समाधान के लिए प्रभावी अवसर दिया जाना चाहिए था।

    ओसीआई कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने की एक वैधानिक प्रक्रिया

    उक्त टिप्पणी के साथ पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह उनके जवाब पर विचार करने के बाद इस मुद्दे पर उचित आदेश पारित करने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी करे। पीठ ने कहा कि ओसीआई कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने की एक वैधानिक प्रक्रिया है।

    पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता को न तो सुनवाई का मौका दिया गया और न ही उसे निर्वासन/काली सूची में डालने के आधार के बारे में बताया गया।

    जून 2024 में दंपती याचिकाकर्ता के माता-पिता से मिलने अमेरिका गए, लेकिन उसी साल अक्टूबर में भारत लौटने पर वैध ओसीआई कार्ड होने के बावजूद उन्हें देश में प्रवेश नहीं करने दिया गया। उन्हें ओसीआई कार्ड के आधार पर आजीवन वीजा दे दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी कि न तो उन्हें कोई कारण बताया गया और न ही उनके निर्वासन को स्पष्ट करने के लिए कोई आधिकारिक आदेश दिया गया। वहीं, केंद्र सरकार ने दलील दी कि याचिकाकर्ता सक्षम प्राधिकारी से विशेष अनुमति प्राप्त किए बिना कई वर्षों से नागालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में मिशनरी गतिविधियों में शामिल था। ऐसे में उसे सुरक्षा एजेंसियों ने काली सूची में डाल दिया।

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