दिल्ली हाई कोर्ट का एलजी के आदेश पर सवाल, पूछा- थानों को ही पुलिसकर्मियों की गवाही के लिए क्यों चुना?
दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिसकर्मियों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाही देने हेतु पुलिस थानों को नामित करने वाली एलजी की अधिसूचना पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा कि यह निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता करती है। कोर्ट ने पूछा कि गवाहों के लिए पुलिस थाने ही क्यों चुने गए जबकि अभियुक्तों से अदालत में पूछताछ होगी। अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पुलिस थानों को पुलिसकर्मियों के लिए वीडियाे काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य व गवाही देने के लिए नामित करने से जुड़ी उपराज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि यह अधिसूचना प्रथमदृष्टया निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता करती है।
अदालत ने कहा कि मामला यह नहीं है कि किसी स्थान को नामित करना उपराज्यपाल के अधिकार में है या नहीं, मुद्दा यह है कि पुलिस अधिकारियों के बयान के लिए विशेष रूप से पुलिस थानों को ही क्यों नामित किया गया?
अदालत ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है। यह प्रविधान अनुच्छेद 14 के अंतर्गत आ भी सकता है और नहीं भी, यह तर्क का विषय है। निष्पक्ष सुनवाई क्या है?
अदालत ने सवाल उठाया कि क्या अभियोजन पक्ष के गवाहों को अपने स्थानों से गवाही देने की अनुमति देकर किसी अभियुक्त के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से समझौता नहीं किया जा रहा है? याचिका में 13 अगस्त को उपराज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना को अधिवक्ता राज गौरव ने चुनौती दी गई है।
पीठ ने कहा कि अदालत समझ सकती है कि औपचारिक गवाहों, जांच अधिकारियों आदि में कुछ कठिनाई होती है। उपराज्यपाल को निर्दिष्ट स्थान की पहचान करने का अधिकार है, इसमें कोई कठिनाई नहीं है।
यहां पर स्थान नामित करने के अधिकार को चुनौती नहीं दी गई है, लेकिन एकमात्र प्रश्न यही है कि पुलिस थानों ही क्यों?
अधिवक्ता राज गौरव द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अदालत ने उनसे पूछा कि क्या संबंधित अधिसूचना पर आज की तारीख में कार्रवाई की जा रही है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अधिसूचना पर आंशिक रूप से कार्रवाई की गई है और दिल्ली पुलिस द्वारा इस मुद्दे पर बार-बार विभिन्न परिपत्र जारी किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उनकी एक प्रार्थना तभी पूरी हो जाएगी जब यह रिकार्ड में आ जाए कि अधिसूचना लागू नहीं होगी। यह भी कहा कि यह अधिसूचना समानता के अधिकार से संबंधित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है।
उन्होंने तर्क दिया कि पुलिसकर्मियों की गवाही तो पुलिस थानों में होगी, लेकिन अन्य अभियुक्तों और गवाहों से पूछताछ अदालत में होगी, जो कि समान स्थिति नहीं है।
अदालत ने अतिरिक्त साॅलिसिटर जनरल चेतन शर्मा से पूछा कि ऐसा प्रविधान क्यों है कि अभियोजन पक्ष के गवाह द्वारा दिया गया प्रत्येक बयान अभियुक्त की उपस्थिति में ही दिया जाना चाहिए? पीठ ने कहा कि आपको निष्पक्षता बनाए रखनी होगी, क्योंकि मुकदमा चलाना भी आपकी जिम्मेदारी है।
इस पर एएसजी ने कहा कि वह अगली सुनवाई की तारीख पर अदालत द्वारा उठाई गई चिंताओं को संज्ञान में लिया गया है और इस मुद्दे पर अगली सुनवाई पर जवाब देंगे। इस पर अदालत ने मामले को 10 दिसंबर के लिए तय कर दिया। इस तारीख पर ऐसी ही एक अन्य याचिका पर भी सुनवाई होगी।
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