आम आदमी पार्टी की सरकार ने श्रमिकों के हितों में घोषणाएं ताे कीं, लेकिन अमल नहीं किया: CM Rekha Gupta
दिल्ली विधानसभा में सीएम रेखा गुप्ता ने पिछली सरकार पर श्रमिकों के कल्याण की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि श्रमिक फंड में 5200 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल के पड़े रहे और श्रमिकों को योजनाओं का लाभ नहीं मिला। कैग रिपोर्ट के अनुसार टूल और चिकित्सा सहायता जैसी योजनाएं भी प्रभावी नहीं रहीं। मुख्यमंत्री ने मामले को पीएससी को भेजने और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा के मानसून सत्र के पांचवें दिन CM Rekha Gupta ने शुक्रवार को सदन में कहा कि दिल्ली की पूर्ववर्ती सरकार ने अपने कार्यकाल में श्रमिकों के हितों में बड़ी बड़ी घोषणाएं की, लेकिन उन पर अमल नहीं किया।
पूर्व सरकार के पास श्रमिक फंड में 5200 करोड़ रुपये की राशि बिना इस्तेमाल के पड़ी रही, जबकि श्रमिक सहायता की प्रतीक्षा करते रहे।
पूर्व सरकार की श्रमिक विरोधी मानसिकता का हाल यह था कि वह श्रमिकों के पंजीकरण के लिए 25 रुपये और नवीनीकरण के लिए 20 रुपये वसूलती रही, जबकि केंद्र सरकार सेवा निश्शुल्क देती है।
इस अतिरिक्त शुल्क के चलते श्रमिकों के वार्षिक डेटा का केवल सात प्रतिशत ही नवीनीकरण हो सका, जबकि केंद्र का डाटा 100 प्रतिशत रिन्यू होता है।
विधानसभा में भवन व अन्य संनिर्माण श्रमिकों के कल्याण पर 31 मार्च 2023 को समाप्त हुए वर्ष के लिए कैग रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को तब हस्तक्षेप करना पड़ा, जब दिल्ली सरकार के पास श्रमिकों के कल्याण के लिए हजारों करोड़ रुपये की राशि होते हुए भी उसे खर्च नहीं किया गया।
न्यायालय ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए यह स्पष्ट कहा था कि यदि सरकार के पास मजदूरों को 8000 रुपये की सहायता देने का प्रविधान था, तो केवल 2000 रुपये क्यों दिए गए? शेष 6000 रुपये की राशि किस कारण नहीं दी गई?
छह वर्षों तक श्रमिकों को नहीं दिए गए 20,000 रुपये
मुख्यमंत्री ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन योजनाओं का लाभ दिल्ली के लाखों श्रमिकों को मिलना चाहिए था, वह उनके अधिकार में होते हुए भी नहीं मिल पाया। 5200 करोड़ रुपये की राशि श्रमिक फंड में बिना उपयोग के पड़ी रही, जबकि श्रमिक सहायता की प्रतीक्षा करते रहे।
सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन सरकार को 90,000 श्रमिकों के खातों में 8000 रुपये की राशि डालने का आदेश देना पड़ा।
मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट के तथ्यों के हवाले से बताया कि पूर्व सरकार द्वारा प्रसूतियों, दिव्यांगता, औजारों की खरीद, आवास सहायता, पारिवारिक पेंशन, दुर्घटना मुआवजा और कौशल प्रशिक्षण जैसी योजनाओं के लिए आवंटित निधि को वर्षों तक या तो खर्च नहीं किया गया या नगण्य उपयोग हुआ।
उदाहरण के लिए, टूल सहायता योजना के अंतर्गत 2018 से 2024 तक किसी भी वर्ष एक भी श्रमिक को 20,000 रुपये की सहायता नहीं दी गई, जबकि यह राशि श्रमिक की आत्मनिर्भरता के लिए महत्वपूर्ण होती।
चिकित्सा सहायता भी कई वर्षों तक रही शून्य
इसी प्रकार, स्थायी दिव्यांगता योजना के अंतर्गत एक लाख रुपये की सहायता भी कई वर्षों तक शून्य रही। चिकित्सा सहायता के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं, जैसे वर्ष 2018, 2019, 2022 और 2024 में किसी भी श्रमिक को इसका लाभ नहीं दिया गया।
कोचिंग सहायता, स्किल ट्रेनिंग, यात्रा पास और महिला श्रमिकों को गर्भपात जैसी स्थितियों में सहायता जैसी योजनाएं भी नाममात्र पर ही चलती रहीं।
मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले को “आम आदमी पार्टी” की “खास मानसिकता” का परिचायक बताया और मांग की कि इस मामले को पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (पीएससी) को भेजा जाए तथा दोषी अधिकारियों और मंत्रियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।
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