दिल्लीवालों के लिए बुरी खबर, महंगी हो सकती है बिजली, सुप्रीम कोर्ट ने भी दे दी मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दिल्ली में बिजली महंगी हो सकती है क्योंकि डिस्कॉम को नियामक परिसंपत्तियों का भुगतान करना होगा जिसका बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। वर्तमान में बिजली बिल पर 8% नियामक अधिभार है जो बढ़ सकता है। भाजपा और उपभोक्ता संगठन इसका विरोध कर रहे थे और आडिट की मांग कर रहे थे।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) को नियामक परिसंपत्तियों (रेगुलेटरी असेट्स) के भुगतान से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से दिल्ली में बिजली महंगी हो सकती है। नियामक संपत्ति उपभोक्ताओं से वसूला जाता है। इस समय उपभोक्ताओं से बिजली बिल पर आठ प्रतिशत नियामक अधिभार वसूला जाता है। आने वाले समय में इसमें वृद्धि हो सकती है।
नियामक परिसंपत्तियों का विवाद पुराना है। बिजली उपभोक्ता और भाजपा इसका विरोध करती रही है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले डिस्काम की नियामक परिसंपत्ति बढ़ने के लिए तत्कालीन आम आदमी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया था।
भाजपा नेताओं का कहना था कि प्राकृतिक आपदा या अन्य अपरिहार्य स्थिति को छोड़कर डिस्काम नियामक परिसंपत्ति का दावा नहीं कर सकती है। दिल्ली में ऐसी स्थिति नहीं है, इसके बाद भी डिस्काम की नियामक परिसंपत्ति बढ़ने दी गई।
बिजली उपभोक्ताओं के हित में काम करने वाली संस्थाएं और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य भी इसका विरोध कर रहे थे। वह डिस्काम के दावे का आडिट कराने की मांग करते रहे हैं। वहीं, डिस्काम नियामक परिसंपत्तियों के भुगतान के लिए सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में निर्णय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली में तीनों निजी बिजली वितरण कंपनियां बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (बीआरपीएल), बीएसईएस राजधानी यमुना पावर लिमिटेड (बीवाईपीएल) और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रिब्यूशन लिमिटेड (टीपीडीडीएल) को कुल 27200.37 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का भुगतान तीन वर्ष में किया जाना है।
अधिकतम चार वर्ष में सभी बकाया का भुगतान हो जाना चाहिए। 31 मार्च, 2024 तक बीआरपीएल का 12993.53 करोड़ रुपये, बीवाईपीएल का 8419.14 करोड़ रुपये और टीपीडीडीएल का 5787.70 करोड़ रुपये नियामक परिसंपत्ति बकाया है।
बिजली नेटवर्क पर किया जाने वाला खर्च को डिस्काम नियामक संपत्ति के रूप में दावा करती है। इसी तरह से महंगी बिजली खरीदकर उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर उपलब्ध कराने में होने वाले घाटे को भी इस मद में शामिल कर लिया जाता है।
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