..वरना हाथी जैसे हो जाएंगे कान, इलास्टिक डोरी वाले मास्क पहनते हैं तो जरूर पढ़ें यह खबर
Delhi Coronavirus News डॉ. सम्राट घोष कहते हैं कि कोरोना से बचने के लिए लंबे समय तक मास्क पहनना है। ज्यादा कसी डोरी वाले मास्क पहनने से एक-दो साल में ...और पढ़ें

नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। जो लोग ऐसा मास्क पहन रहे हैं जिसकी इलास्टिक डोरी कान में फंसाई जाती है, उनके कान में दर्द की शिकायतें आ रही हैं। इलास्टिक डोरी कसी होने से कान आगे की तरफ खिंचते हैं। कान के पीछे खरोचें भी पड़ जाती हैं। वसंत कुंज निवासी विज्ञानी डॉ. सम्राट घोष कहते हैं कि कोरोना से बचने के लिए लंबे समय तक मास्क पहनना है। ज्यादा कसी डोरी वाले मास्क पहनने से एक-दो साल में लोगों के कान आगे खिंचकर हाथी जैसे हो सकते हैं। वहीं, लंबे समय तक के लिए कान में दर्द भी हो सकता है।
इसलिए वह फेसबुक, वाट्सएप पर लोगों को ऐसे इलास्टिक वाले मास्क न पहनने के लिए जागरूक कर रहे हैं। वह इससे संबंधित पोस्टर व काटरून भी लोगों को शेयर करके इसके प्रति आगाह कर रहे हैं। घोष कहते हैं कि लोगों को ऐसे मास्क पहनने चाहिए जिसकी डोरी सिर में बांधी जा सके।
नहीं रहा कोरोना का खौफ
कोरोना का जो खौफ तीन माह पहले था, अब वह राजधानी के लोगों में नहीं रह गया है। इसकी बानगी आजकल कॉलोनियों व सोसायटियों में देखी जा सकती है। पहले लोग एंबुलेंस को अपनी कॉलोनियों में घुसने तक नहीं देते थे, स्वास्थ्य कर्मियों को देखते ही उनसे दूर भागते थे। लेकिन, अब लोग खुद ही जिला प्रशासन से अपनी कॉलोनियों, पार्किंग बारात घर, स्कूल में कोरोना जांच शिविर लगाने का अनुरोध कर रहे हैं।
अधिकारी भी लोगों की अपील पर जहां जरूरत है वहां पर शिविर लगवा देते हैं और 200-300 लोगों की जांच कर दी जाती है। जिन्हें कोई लक्षण नहीं है वे भी आकर जांच करवा लेते हैं। स्वास्थ्य कर्मी भी इसे अच्छा ही मान रहे हैं। कारण कि जितने ज्यादा से ज्यादा लोग कोरोना की जांच कराएंगे, उतने ही ज्यादा संक्रमितों की पहचान हो सकेगी और उन्हें आइसोलेट किया जा सकेगा। इससे संक्रमण नहीं फैलेगा।
नाम लिखवाकर खिसक लेते हैं लोग
आजकल कोरोना की जांच को जगह-जगह शिविर लगाए जा रहे हैं। सुबह बड़ी संख्या में लोग शिविर में पहुंचकर अपना नाम दर्ज करवाते हैं। 40-50 लोगों के जुटने के बाद जैसे ही जांच शुरू होती है, कुछ लोग बिना सैंपल दिए ही वहां से खिसकने लगते हैं। स्वास्थ्य कर्मी उनका नाम पुकारते हैं तो पता चलता है कि वे तो निकल गए। कारण पूछने पर हास्यास्पद बात सामने आती है। दरअसल, टेस्ट के लिए लोगों की नाक से स्वैब लिया जाता है। इस दौरान गुदगुदी होती है। लोग आनाकानी करते हैं और कुर्सी से उठकर भागने लगते हैं। इससे मौके पर मौजूद लोग इसे दर्द समझकर अपना नंबर आने से पहले ही खिसक लेते हैं। हालांकि, स्वास्थ्य कर्मी लोगों को समझाते हैं कि इससे दर्द नहीं होता है और कोई जानबूझकर ऐसा नहीं करता है। यह नमूना लेने की अनिवार्य प्रक्रिया है। इसके बावजूद लोग जांच कराने से कतराते हैं।
आपदा को अवसर में बदला
महिलाओं ने कोरोना महामारी जैसी आपदा को अवसर में बदल लिया है। छात्रओं और गृहणियों ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप पर तरह-तरह के उत्पाद की मार्केटिंग शुरू कर दी है। इनके वाट्सएप स्टेटस पर उनकी फोटो की बजाय उनके उत्पादों की स्लाइड्स होती हैं। और हो भी क्यों न। कोरोना ने न जाने कितने लोगों को बेरोजगार कर दिया। तो अब युवाओं ने नए जमाने के बाजार को अपना लिया है।
फेसबुक पर पहुंचते ही इस पर ऐसे उत्पादों की कतार लग जाती है। लोग यहां लाइव आकर अपने उत्पाद दिखाते हैं। उनकी खासियत बताते हैं। कोई अचार बेच रहा है तो कोई पापड़ व घर में बना साबुन या चॉकलेट या फिर आर्टिफिशियल ज्वेलरी। लोगों को भी ये शॉपिंग पसंद आ रही है। उत्पाद यहां पहले भी बिकते थे, लेकिन कोरोना काल ने तो जैसे ऑनलाइन मार्केट को नया आयाम दे दिया है। महिलाएं इसका फायदा उठा रही हैं।

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