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    दिल्ली की CM रेखा गुप्ता ने सदन में पेश की CAG Report, निर्माण श्रमिकों के कल्याण में सामने आई बड़ी लापरवाही, पढ़ें रिपोर्ट

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 10:41 PM (IST)

    दिल्ली में निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर कैग की रिपोर्ट में कई खामियां उजागर हुई हैं। पंजीकरणों का नवीनीकरण कम हुआ है और श्रमिकों का अविश्वसनीय डेटा पाया गया है। कल्याण निधि का भी कम उपयोग हुआ है। कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ श्रमिकों तक नहीं पहुंचा और उपकर संग्रहण में भी कमी पाई गई है। श्रम विभाग द्वारा निर्माण स्थलों का निरीक्षण भी नहीं किया गया।

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    कैग रिपोर्ट में खुली निर्माण श्रमिकों केे कल्याण की कलई।

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने उजागर किया है कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने में दिल्ली का प्रदर्शन खराब रहा है।

    चार वर्षों में केवल 7.3 प्रतिशत पंजीकरणों का नवीनीकरण हुआ है, जो राष्ट्रीय औसत 74 प्रतिशत से काफी कम है। यह निष्कर्ष 2019 -20 से 2022-23 तक की चार वर्षों की अवधि के रिकार्ड पर आधारित है, जब राज्य में आम आदमी पार्टी सत्ता में थी।

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    कैग रिपोर्ट में अविश्वसनीय श्रमिक डेटा और कल्याण निधि के कम उपयोग सहित गंभीर खामियों का उल्लेख किया गया है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मानसून सत्र के पहले दिन विस सदन पटल पर CAG Report वेलफेयर ऑफ बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स रखी।

    राष्ट्रीय योजनाओं और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत अनिवार्य प्रमुख स्वास्थ्य एवं बीमा लाभों को लागू करने में विफलता को भी चिह्नित किया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिकों से संबंधित कोई विश्वसनीय डेटा नहीं रखा है।

    वास्तव में, बोर्ड पंजीकृत बताए गए 6.96 लाख कर्मचारियों में से केवल 1.98 लाख का ही पूरा डेटाबेस उपलब्ध करा सका। जिन 1.98 लाख लाभार्थियों की तस्वीरें ऑडिट के साथ साझा की गईं, उनमें से 1.19 लाख लाभार्थियों की तस्वीरें 2.38 लाख तस्वीरों से जुड़ी थीं।

    एक लाभार्थी की एक से ज्यादा तस्वीरें थी। डुप्लिकेट तस्वीरें, बिना चेहरों वाली तस्वीरें और एक ही चेहरे के कई पंजीकरण, पंजीकरण प्रक्रिया में गंभीर खामियों और ऐसी विसंगतियों का पता लगाने में आईटी प्रणाली की विफलता का संकेत देते हैं।

    ऑडिट अवधि के दौरान 17 कल्याणकारी योजनाओं में से केवल 12 के तहत ही लाभ दिया गया। पांच योजनाओं के तहत कोई खर्च दर्ज नहीं किया गया। इनमें गर्भपात के लिए वित्तीय सहायता, घर खरीदने या निर्माण के लिए अग्रिम, उपकरणों की खरीद के लिए ऋण या अनुदान और बीमा पाॅलिसी हैं।

    चयनित दक्षिण और उत्तर पश्चिम जिलों में, अप्रैल 2019 और मार्च 2023 के बीच उपकर जमा करने वाले 97 निजी प्रतिष्ठान पंजीकृत नहीं पाए गए।

    इसी तरह, दिल्ली अग्निशमन सेवा की वेबसाइट पर सूचीबद्ध 25 निर्माण-संबंधी प्रतिष्ठान भी पंजीकृत नहीं थे। ऑडिट में इसके लिए बोर्ड द्वारा पात्र प्रतिष्ठानों की पहचान और पंजीकरण में सक्रियता की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया।

    दिल्ली सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि रिपोर्ट सदन में पेश कर दी गई है और इस पर चर्चा सप्ताह भर चलने वाले मानसून सत्र के आगामी दिनों में होगी।

    भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम, 1996 के अंतर्गत, निर्माण लागत का एक प्रतिशत उपकर लगाया जाना है। मार्च 2023 तक, बोर्ड के पास 3,579.05 करोड़ की धनराशि संचित थी। हालांकि, विभाग ने उपकर के आंकलन, संग्रहण और प्रेषण का एक समेकित डेटाबेस नहीं रखा।

    रिपोर्ट में ज़िला रिकार्ड और बोर्ड के रिकार्ड के बीच उपकर के आंकड़ों में 204.95 करोड़ का अंतर बताया गया है, जिनका मिलान नहीं किया गया था। गलत आकलन और उपकर के कम संग्रहण या जमा के मामले भी देखे गए।

    निर्माण श्रमिकों के 58,998 बच्चों की शिक्षा के लिए 2018-19 और 2019-20 के लिए 46.08 करोड़ की वित्तीय सहायता मार्च 2022 में ही जारी की गई। बाद के वर्षों के लाभों का भुगतान सितंबर 2023 तक नहीं किया गया।

    विभिन्न योजनाओं से संबंधित 4,017 आवेदनों में से 134 के निपटान में 1,423 दिनों तक की देरी हुई। हालांकि भारत सरकार ने अक्टूबर 2018 में राज्यों को श्रमिकों के लिए पारगमन आवास, श्रमिक शेड, मोबाइल शौचालय और क्रेच उपलब्ध कराने की सलाह दी थी।

    लेकिन, दिल्ली में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके अलावा, 2019-20 के बाद कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया, जब केवल 350 श्रमिकों को प्रशिक्षित किया गया था।

    बोर्ड ने जून 2019 में केंद्र के निर्देश के क्रियान्वयन को मंजूरी दे दी, जिसमें आकस्मिक मृत्यु के मामले में चार लाख और प्राकृतिक मृत्यु के लिए दो लाख के संशोधित मुआवजे का प्रावधान था। हालांकि इसने क्रमशः दो लाख और एक लाख प्रदान करना जारी रखा।

    ऑडिट में यह भी बताया गया कि दिल्ली के भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक आयुष्मान भारत/प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) के अंतर्गत कवर नहीं थे, जो प्रति परिवार सालाना पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा प्रदान करती है।

    इसके बजाय, श्रमिक केवल 10,000 की अधिकतम चिकित्सा सहायता के हकदार थे। भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण अधिनियम के प्रविधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संपूर्ण ऑडिट अवधि के दौरान श्रम विभाग या औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य निदेशालय द्वारा निर्माण स्थलों का कोई निरीक्षण भी नहीं किया गया।

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