Delhi Assembly Session: AAP की पूर्व सरकार पर उठ रहे सवाल, कैग रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे
दिल्ली विधानसभा में कैग रिपोर्ट पेश होने के बाद कई खुलासे हुए हैं। पहले आबकारी नीति के कारण सरकारी खजाने को नुकसान की बात सामने आई। अब वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आप सरकार के कार्यकाल में उठाए गए कदमों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इस लेख के माध्यम से पढ़िए की इस CAG Report में इसको लेकर क्या कहा गया है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली के वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आप सरकार के कार्यकाल में उठाए गए कदमों पर भी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों, प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र जारी करने के तौर तरीकों और सड़क किनारे वाहन पार्किंग को हतोत्साहित करने के लिए बढ़ाई गई दरों के हिसाब किताब पर सवाल खड़े किए गए हैं।
सनद रहे कि ''दिल्ली में वाहन वायु प्रदूषण की रोकथाम और शमन, 2021'' रिपोर्ट को भी दिल्ली विधानसभा के इसी सत्र में ही पेश किया जाएगा। यह सीएजी की उन 14 रिपोर्टों में से एक है जिसे भाजपा ने आप पर अपने कार्यकाल के दौरान "दबाने" का आरोप लगाया है।
भाजपा ने AAP पर कैग रिपोर्ट को दबाने का लगाया आरोप
सूत्रों के मुताबिक सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के तहत 13 सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) के सितंबर 2020 के आडिट से सामने आया है कि सभी स्टेशन अपने आसपास पेड़ों से घिरे थे, जो केंद्रीय मानदंडों के खिलाफ है।
सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा- निर्देश यह स्पष्ट करते हैं कि पेड़ भी मलबे, पराग या कीट रूप में कण पदार्थ के स्रोत हो सकते हैं। इसके अलावा पेड़ों के आसपास लगे होने से निगरानी स्टेशन वायु प्रदूषण का सही आंकड़ा भी नहीं दे सकते। अक्टूबर 2021 में अपने जवाब में पर्यावरण विभाग ने भी इसे स्वीकारते हुए कहा था कि मानदंडों के अनुपालन के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
परिवहन विभाग ने इस बात को किया स्वीकार
सीएजी रिपोर्ट से पता चला है कि ऑडिट रिपोर्ट पीयूसीसी (प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र) जारी करने में अपर्याप्तता और अशुद्धियों को भी उजागर करती है। यह प्रमाण पत्र ही निर्धारित करता है कि कोई वाहन सड़कों पर चलने के लिए उपयुक्त है या नहीं।
हैरानी की बात यह कि इसे लेकर अपने जवाब में परिवहन विभाग ने भी स्वीकार किया था कि सिस्टम में कुछ दिक्कत थी और पीयूसीसी जारी करने की प्रक्रिया राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र को सौंपी जाएगी।
जरा गौर फरमाएं:
- 2018-19 और 2020-21 के बीच, सभी पंजीकृत वाहनों में से केवल 46 से 63 प्रतिशत ने ही प्रदूषण जांच कराई।
- पीयूसीसी डेटाबेस (सितंबर 2019) की परीक्षण जांच से पता चला कि 7,643 मामलों में, एक ही केंद्र में एक ही समय में एक से अधिक वाहनों की उत्सर्जन सीमा की जांच की गई थी, जो संभव नहीं है।
- 76,865 मामलों में, एक ही केंद्र से पीयूसीसी जारी करने के बीच का अंतर एक मिनट से भी कम था। सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट बताती है कि एक केंद्र पर दो वाहनों को एक साथ पीयूसीसी जारी नहीं किया जा सकता है और पूरी प्रक्रिया भी एक मिनट में पूरी नहीं की जा सकती है।
- अनुमेय सीमा से अधिक कार्बन मोनोआक्साइड और हाइड्रोकार्बन उत्सर्जित करने के बावजूद 65.36 लाख वाहनों में से 1.08 लाख को पीयूसीसी जारी किए गए।
- एक और श्रेणी, जिस पर सीएजी रिपोर्ट प्रकाश डालती है, वह है पार्किंग शुल्क का उपयोग। पर्याप्त पार्किंग स्थान सड़क किनारे पार्किंग को हतोत्साहित करते हैं और सड़क की भीड़ को कम करते हैं। यह वायु प्रदूषण शमन में एक महत्वपूर्ण कदम है। सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट बताती है कि एकत्र की गई अधिकांश राशि के लिए धन के उपयोग का कोई विवरण नहीं है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014-15 और 2020-21 के बीच पार्किंग विकास शुल्क के रूप में 673.60 करोड़ रुपये एकत्र किए गए, जिसमें से 639.92 करोड़ रुपये उस समय मौजूद तीन नगर निगमों को दिए गए। शेष 33.68 करोड़ रुपये परिवहन विभाग ने अपने पास रख लिए। लेकिन विभाग के पास पार्किंग सुविधाएं बनाने के लिए एकत्रित किए गए धन के उपयोग का विवरण नहीं था।
- सूत्रों के मुताबिक, पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने सितंबर 2021 में कहा था कि उसे आधुनिक पार्किंग सिस्टम के निर्माण के लिए 2014 से 2021 के बीच परिवहन विभाग से 122.55 करोड़ रुपये मिले थे लेकिन जनवरी 2015 में निर्माण के लिए उसने केवल 27.5 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।
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