दिल्ली में प्रदूषण का कारण बनी सेकेंडरी एरोसोल की परत, कई गैसें आपस में मिलकर बन रही हैं ज्यादा घातक
वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण है यह सभी जानते हैं। इसलिए वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयास भी किए जाते रहे हैं। इन सबके बीच विभिन्न स्रोतों से निकलने वाली गैसें भी वातावरण में आपस में मिलकर सल्फेट नाइट्रेट व अमोनियम जैसे प्रदूषक तत्व तैयार कर रही हैं।

रणविजय सिंह, नई दिल्ली। वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण है, यह सभी जानते हैं। इसलिए वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयास भी किए जाते रहे हैं। यही वजह है कि डीजल से चलने वाली बसों की जगह सीएनजी बसों ने ले ली और अब इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। फिर भी अभी वाहनों से निकलने वाला धुआं दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है।
दिल्ली के प्रदूषण में पराली की चर्चा भी खूब होती है। इन सबके बीच विभिन्न स्रोतों से निकलने वाली गैसें भी वातावरण में आपस में मिलकर सल्फेट, नाइट्रेट व अमोनियम जैसे प्रदूषक तत्व तैयार कर रही हैं। वातावरण में इस तरह के सेकेंडरी एरोसोल की परत भी दिल्ली में प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन रहा है। दिल्ली में प्रदूषण के स्रोतों की वास्तविक समय में निगरानी के लिए शुरू आर-आसमान पोर्टल के आंकड़े इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं।
सेकेंडरी एरोसोल बना बड़ा खतरा
इस पोर्टल पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा समय में दिल्ली में प्रदूषण का प्रमुख स्रोत वाहन, सेकेंडरी एरोसोल और बायोमास जलाना है। 14 व 15 नवंबर को प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों का धुआं था। सेकेंडरी एरोसोल दूसरा बड़ा कारण रहा। बृहस्पतिवार को सेकेंडरी एरोसोल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण रहा। प्रदूषण में इसकी हिस्सेदारी 35 प्रतिशत रही।
पोर्टल के अनुसार, वातावरण में विभिन्न गैसें मिलकर सल्फेट, नाइट्रेट व अमोनियम के कण बनाती हैं। पावर प्लांट, रिफाइनरी, ईंट भट्ठे की चिमनी, वाहन, औद्योगिक, कृषि, जैविक अपशिष्ट अपघटन और खुले नालों से निकलने वाली गैस इसके प्रमुख स्रोत होते हैं।
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ईंट के भट्ठों पर है प्रतिबंध
ग्रेप के तहत एनसीआर में अभी ईंट भट्ठे की चिमनी पर प्रतिबंध है। व्यावसायिक पर्यावरणीय स्वास्थ्य के विशेषज्ञ और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के ग्रेप से संबंधित सब कमेटी के सदस्य डॉ. टीके जोशी ने कहा कि सेकेंडरी एरोसोल विभिन्न गैसों के मिश्रण से बना प्रदूषक तत्व है। सल्फेट, नाइट्रेट जब सांस के जरिये अंदर पहुंचता है तो फेफड़े को नुकसान पहुंचाता है। इससे सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव डिजीज) व सांस की कई अन्य बीमारियां होने का खतरा रहता है।
विवाद के कारण बंद हो गया था आर-आसमान पोर्टल
आर-आसमान पोर्टल का संचालन आइआइटी कानपुर करता है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) ने इसके संचालन के लिए आइआइटी कानपुर को भुगतान करना बंद कर दिया था। इस वजह से आइआइटी कानपुर का करोड़ों रुपया बकाया था। इस वजह से इस पोर्टल को बंद कर दिया था। भुगतान से संबंधित विवाद खत्म होने के बाद दिल्ली सरकार ने इसे दोबारा शुरू कराया है।
पंजाब में पराली जलाने वालों पर कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी पंजाब में पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई में खानापूर्ति हो रही है। राज्य में पराली जलाने की 31,932 घटनाएं सामने आईं, जबकि एफआइआर मात्र 335 किसानों के खिलाफ हुई है। सर्वाधिक 77 एफआइआर मोगा में दर्ज की गई है।
कोर्ट के निर्देश के बाद सरकार ने रेड अलर्ट जारी कर सख्ती दिखाई है, लेकिन पराली जलने के मामले बढ़ रहे हैं। एक्यूआइ में भी लगातार वृद्धि हो रही है। राज्य में गुरुवार को पराली जलाने की 1271 घटनाएं रिकार्ड की गईं।
इसके साथ ही पराली जलाने की कुल घटनाएं बढ़कर 31932 हो चुकी हैं। वर्ष 2021 में 16 नवंबर तक पराली जलने की जहां 68777 घटनाएं हुई थीं, जबकि 2022 में 16 नवंबर तक यह आंकड़ा 46822 था।
हालांकि, सरकार ने पराली जलाने वालों पर शिकंजा कसने के लिए विशेष डीजीपी अर्पित शुक्ला को नोडल अफसर नियुक्त किया है। गांवों में अतिरिक्त पेट्रोलिंग की जा रही है। पुलिस पार्टियां व उड़नदस्ते गांवों में पेट्रोलिंग तो कर रहे हैं,पर किसान उनके जाते ही पराली जलाना शुरू कर रहे हैं। कई जिलों में एसएसपी व जिला उपायुक्त गांव-गांव का दौरा कर रहे हैं, लेकिन किसान संगठन लोगों को पराली जलाने के लिए उकसा रहे हैं।
- राज्य में पराली जलाने के मामले 31 हजार से ऊपर, 335 रिपोर्ट दर्ज
- पुलिस टीमें कर रहीं गांवों में पेट्रोलिंग, फिर भी जल रही पराली
बीते दिनों बठिंडा में भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के लोगों ने पराली जलाने से रोकने आए एसडीओ से जबरन पराली जलवा दी, जबकि रामपुरा फूल में एसडीएम को बंधक बना दिया, तो छोटे अधिकारी गांवों में किसानों पर कार्रवाई करने से कतरा रहे। पुलिस ने मोगा में 77, फरीदकोट में 51, मानसा में 32, फिरोजपुर में 30, तरनतारन में 29, पटियाला में 28, फाजिल्का में 21 एफआइआर दर्ज की हैं। अन्य जिलों में भी एफआइआर दर्ज की गई हैं।
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