पराली नहीं दिल्ली के प्रदूषण की वजह कुछ और...? विशेषज्ञों ने खोली पोल, सवालों के घेरे में सरकारें
दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है जिसके लिए स्थानीय कारक जिम्मेदार हैं पराली नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार वाहनों का धुआं कचरा जलाना सड़कों की धूल और निर्माण कार्य मुख्य कारण हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी स्थानीय स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता बताई है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए उपाय सफल नहीं हुए हैं इसलिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। विगत कुछ वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण की मुख्य वजह पराली जलना बताई जाती रही है, लेकिन सच्चाई यह कतई नहीं है। प्रदूषण की रोकथाम में अपनी नाकामी छिपाने के लिए पूर्ववर्ती सरकारें स्थानीय कारकों की अनदेखी करके इसी का ढोल पीटती रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों ने कभी भी इस झूठे सच को स्वीकार नहीं किया।
तमाम थिंक टैंक के अध्ययन और विश्लेषण बताते रहे हैं कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए स्थानीय कारक जिम्मेदार हैं और दिल्लीवासियों को राहत दिलाने के लिए सरकार को पहले अपने कारकों पर काम करना होगा। इस अत्यंत गंभीर विषय को लेकर हम आपके समक्ष एक समाचारीय शृंखला प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जो स्थिति की गंभीरता दर्शाने के साथ ही समस्या के वास्तविक कारणों से आपका परिचय कराएगी और उपाय भी सुझाएगी।
सर्दियों की दस्तक अभी नहीं हुई है, लेकिन राजधानी में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जो एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) अभी 10 दिन पहले तक 100 से नीचे यानी संतोषजनक श्रेणी में चल रहा था, अब 100 से ऊपर मध्यम श्रेणी में पहुंच गया है। प्रदूषण के स्तर में हो रही इस वृद्धि की सबसे बड़ी वजह वाहनों का ईंधन जलने से निकलने वाला धुआं है।
पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रापिकल मीट्रियोलाजी (आइआइटीएम), जो डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) के जरिये हर वर्ष सर्दियों में दिल्ली के प्रदूषण की निगरानी करता है, के विज्ञानी भी इसकी पुष्टि करते हैं।
एयरोसोल पर अध्ययन करने वाले डा. सचिन दिनकर घुड़े बताते हैं कि बेशक पंजाब और हरियाणा में पखवाड़े भर से पराली जलनी शुरू हो गई हो, लेकिन दिल्ली के एक्यूआइ में अभी तक इसकी हिस्सेदारी शून्य है। अगले तीन-चार दिन तक भी यही स्थिति रहने वाली है।
वहीं, दूसरी तरफ, दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ी हिस्सेदारी वाहनों से निकलने वाले धुएं की रही है। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर बने बाटलनेक के कारण लगने वाले यातायात जाम के चलते वाहन सामान्य गति के मुकाबले बेहद धीमे चलते हैं या रुक-रुक कर चलते हैं, इससे ईंधन कहीं अधिक जलता है और जहरीली गैसों का उत्सर्जन कई गुना बढ़ जाता है। दूसरे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था लचर होने के चलते सड़कों पर वाहनों की संख्या भी बहुत अधिक रहती है।
इसके अलावा, टूटी सड़कों और निर्माण स्थलों की धूल, औद्योगिक धुआं, कचरा जलाना और मलबा भी प्रदूषण बढ़ाने में योगदान दे रहा है। शेष कसर एनसीआर के जिलों का प्रदूषण पूरी कर दे रहा है।
दिल्ली के प्रदूषण में किस कारक की कितनी हिस्सेदारी
कारक हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
वाहनों का धुआं 25 प्रतिशत
कचरा जलाना 20 प्रतिशत
सड़कों की धूल 20 प्रतिशत
निर्माण व ध्वंस कार्यों की धूल 15 प्रतिशत
उद्योगों से निकला धुआं 10 प्रतिशत
अन्य स्रोत 10 प्रतिशत
पराली शून्य
दिल्ली के प्रदूषण में स्थानीय कारक जिम्मेदार : सीएसई
सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी के मुताबिक दिल्ली की हवा में अभी पराली जलने के चलते होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी नहीं के बराबर है। इसके बावजूद दिल्ली का एक्यूआइ बढ़ने लगा है। इसके लिए स्थानीय स्रोतों को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
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उनका कहना है कि प्रदूषण के लिए केवल पराली को जिम्मेदार ठहराकर बचा नहीं जा सकता है। प्रदूषण की रोकथाम के लिए वाहनों से होने वाले प्रदूषण में कमी लाने के साथ-साथ घरों में जल रहे ईंधन, उद्योगों के उत्सर्जन और निर्माण गतिविधियों से होने वाले धूल प्रदूषण की रोकथाम करना भी बहुत जरूरी है।
सफल नहीं हुए प्रदूषण की रोकथाम के लिए किए गए उपाय
- सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था सुधारने के लिए ठोस प्रयास नहीं हुए। इलेक्ट्रिक बसें कम आईं, जबकि पुरानी बसें ज्यादा हट गईं।
- यातायात जाम के कारण यानी सड़कों पर बने बाटलेक दूर करने के लिए सिर्फ बातें की गईं, ठोस प्रयास नहीं हुआ।
- वाहनों का ईंधन जलने से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए रेड लाइट आन, गाड़ी आफ अभियान चलाया गया, लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम नहीं मिले।
- धूल प्रदूषण के लिए सड़कों के किनारे पानी के छिड़काव की व्यवस्था मुख्यतया ग्रामीण इलाकों में की गई, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं निकला।
- निर्माण स्थलों पर एंटी स्माग गन की तैनाती अनिवार्य कर दी गई, लेकिन जुर्माना सामान्यतया केंद्र सरकार की परियोजनाओं पर किया गया।
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