Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    AAP vs BJP: दिल्ली मेयर को लेकर टकराव, क्या है भाजपा की रणनीति? स्थायी समिति को लेकर क्यों बढ़ी आप की चिंता

    By Nihal SinghEdited By: Geetarjun
    Updated: Sat, 07 Jan 2023 12:42 PM (IST)

    Delhi Mayor दिल्ली के महापौर व उपमहापौर चुनाव से पहले हंगामे की वजह भले किसी को समझ न आ रही हो लेकिन इसके पीछे स्थायी समिति पर कब्जे की चाहत मानी जा रही है। स्थायी समिति पर भाजपा का कब्जा होने पर आप की टेंशन बढ़ जाएगी।

    Hero Image
    शुक्रवार को सिविक सेंटर में मेयर चुनाव के दौरान आप और भाजपा पार्षद भिड़े।

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली के महापौर व उपमहापौर चुनाव से पहले हंगामे की वजह भले किसी को समझ न आ रही हो, लेकिन इसके पीछे स्थायी समिति पर कब्जे की चाहत मानी जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप का महापौर बनने के बावजूद, भाजपा स्थायी समिति पर कब्जा करने में सफल हुई तो आप के लिए काम करना आसान नहीं होगा। इसलिए दोनों दल अपनी-अपनी रणनीति बनाकर आए थे। जब दोनों दलों को उनके अनुरूप चीजें होती नहीं दिखीं, तो आपस में भिड़ गए। दोनों की कोशिश महापौर के साथ स्थायी समिति अध्यक्ष पद पर कब्जा करने की थी। इसमें मनोनीत सदस्य अहम भूमिका में हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किसी वजह से इनका शपथ ग्रहण नहीं होता है तो भाजपा 12 में से सात जोन में जीतने की जो जुगत लगा रही है, वह रणनीति सफल नहीं होती। सूत्रों के मुताबिक भाजपा की रणनीति मनोनीत सदस्यों को शपथ दिलाकर मध्य, नरेला और सिविल लाइंस जोन पर कब्जा करने की है। यहां पर भाजपा के पास बहुमत नहीं हैं, लेकिन जोन में मनोनीत सदस्यों को वोटिंग करने का अधिकार हैं।

    AAP की रणनीति का हिस्सा

    इसलिए न केवल भाजपा इन जोन में चेयरमैन बनाने में कामयाब होती, बल्कि स्थायी समिति में भी उसे चेयरमैन बनाने में सफलता मिल सकती थी। आप से जुड़े सूत्रों के अनुसार, उसकी रणनीति फिलहाल मनोनीत सदस्यों का शपथ ग्रहण टालने की थी। इससे आने वाले दो सप्ताह में जोन चेयरमैन और स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव में आप को जीत मिल जाती।

    इससे आम आदमी पार्टी, 12 में से आठ जोन जीत सकती थी। पार्टी के पास यहां पर फिलहाल बहुमत है। मनोनीत सदस्यों की शपथ हो जाती तो बहुमत का आंकड़ा भाजपा के पक्ष में चला जाता।

    स्थायी समिति पर कब्जे के लिए चाहिए 10 वोट

    दिल्ली नगर निगम में स्थायी समिति सबसे शक्तिशाली होती है। वित्तीय निर्णय लेने का अधिकार इसी समिति के पास होता है। स्थायी समिति के अध्यक्ष पद पर कब्जा करने के लिए 18 में 10 सदस्य चाहिए। स्थायी समिति में 12 सदस्य तो 12 जोन से आते हैं। वहीं छह सदस्य सदन से चुनकर आते हैं। वर्तमान में भाजपा के पास पांच जोन में पूर्ण बहुमत है, जबकि नरेला जोन में बराबर का मुकाबला है।

    मध्य जोन में कांग्रेस ने समर्थन दिया तो यह जोन भी भाजपा जीत सकती है। ऐसे में भाजपा को विभिन्न जोन से सात सदस्य मिलने की उम्मीद है। इनके अलावा तीन सदस्य, भाजपा सदन से जिताना चाहती है। अगर ऐसा होता है तो 10 सदस्यों के साथ भाजपा स्थायी समिति पर कब्जा करने में कामयाब हो जाएगी।

    अभी क्यों हो रहा है विवाद?

    दिल्ली नगर निगम में अक्सर निगम के चुनाव अप्रैल में होते रहे हैं और महापौर का चुनाव अप्रैल में ही पूरा हो जाता है, लेकिन निगमों के एकीकरण के बाद यह चुनाव दिसंबर में हुए। ऐसे में जो महापौर चुना जाएगा, उसका कार्यकाल 30 मार्च तक ही होगा। इसलिए जनवरी के आखिरी सप्ताह तक जोन का गठन भी होना है। इसलिए पहली बार उपराज्यपाल ने सदन की पहली बैठक से पहले ही मनोनीत सदस्यों को नियुक्त कर दिया।

    ये भी पढ़ें- Delhi Mayor Election: कब मिलेगा दिल्ली को मेयर? अब उपराज्यपाल के पाले में गेंद; सदन की बैठक की तय करेंगे तारीख

    मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति का नियम

    निगम के पूर्व विधि अधिकारी अनिल गुप्ता बताते हैं कि निगम एक्ट के अनुच्छेद तीन में स्पष्ट है कि 10 सदस्य, जिनकी आयु 25 वर्ष से अधिक होगी, प्रशासक उनकी नियुक्ति करेंगे। प्रशासक की परिभाषा निगम एक्ट के अनुच्छेद 2 (1) में स्पष्ट करके बताई गई है। इसके मुताबिक दिल्ली के उपराज्यपाल ही प्रशासक होंगे। इसमें किसी भी सरकार से सुझाव लेने का नियम नहीं है।

    निगम के एक्ट में ये है प्रविधान

    निगम के एक्ट में वैसे तो मनोनीत सदस्यों के पास मतदान का अधिकार नहीं हैं, लेकिन 2015-16 में कांग्रेस से मनोनीत सदस्य ओनिका मल्होत्रा की याचिका पर हाई कोर्ट ने इन सदस्यों को जोन में वोटिंग का अधिकार दे दिया था। सदन में वोटिंग करने का अधिकार इनके पास नहीं होता है।