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    Delhi: कहीं गुम न हो जाए एयरपोर्ट से सटी 400 साल पुरानी धरोहर, मेहरम नगर की ऐतिहासिक सराय को संरक्षण की दरकार

    By Manisha GargEdited By: Abhi Malviya
    Updated: Thu, 12 Jan 2023 06:36 PM (IST)

    400 वर्ष पुराना ऐतिहासिक ढांचा उपेक्षा के आंसू बहा रहा है। यह ढांचा आइजीआइ के टर्मिनल-1 से सटे गांव मेहरम नगर गांव की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। देखरेख के अभाव में यह इमारत अब ढहने के कगार पर है।

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    IGI के टर्मिनल-1 से सटा है ऐतिहासिक ढांचा

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। उलान बटार रोड के किनारों पर आजकल जी20 बैठक आयोजन को देखते हुए साजसज्जा का कार्य चल रहा है। सारनाथ के अशोक स्तंभ के शीर्ष पर विराजमान शेर की प्रतिकृति यहां जगह-जगह लगाई गई है।

    IGI के टर्मिनल-1 से सटा है ऐतिहासिक ढांचा

    एक ओर सड़क पर भारत के प्राचीन प्रतीक की प्रतिकृति को लेकर यहां कार्य होता नजर आता है, वहीं इस रोड के दूसरी ओर करीब 400 वर्ष पुराना ऐतिहासिक ढांचा उपेक्षा के आंसू बहाता नजर आता है। यह ढांचा आइजीआइ के टर्मिनल-1 से सटे गांव मेहरम नगर गांव की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। देखरेख के अभाव में यह इमारत अब ढहने के कगार पर है।

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    राज्य पुरातत्व विभाग ने इनटेक (दि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज) के साथ मिलकर वर्ष 2015 में इसके संरक्षण की दिशा में काम शुरू किया था। पर दो विभागों के बीच स्वामित्व के मसले पर यहां ऐसी रार छिड़ी कि इसे इसके हाल पर छोड़ दिया गया। मेहरम नगर गांव के निवासी बताते हैं कि यदि इस इमारत का सही तरीके से संरक्षण हो, तो यहां पर्यटन की अपार संभावना है।

    असल में यह ऐतिहासिक ढांचा रक्षा मंत्रालय की जमीन पर स्थापित है और इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी रक्षा संपदा भवन के पास है। राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने बताया कि गांव में इस ऐतिहासिक ढांचे के नाम पर दीवार का कुछ हिस्सा व दो गुबंद शेष है।

    2015 में दीवार को सीधा करने का काम शुरू किया गया था। करीब 30 प्रतिशत काम हुआ भी था, पर दिल्ली छावनी परिषद ने किसी कारणवश काम को रुकवा दिया, जो आज तक रुका ही हुआ है। इस पर मौजूदा दिल्ली छावनी परिषद के अधिकारियों को कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, पर उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 में राज्य पुरातत्व विभाग ने ऐतिहासिक इमारत के संरक्षण के लिए इजाजत मांगी थी। जिसके बाद उच्च अधिकारियों से इस मसले पर बात की गई थी। जिसमें जमीन दिल्ली छावनी परिषद को स्थानांतरित करने की बात रखी गई थी, पर उच्च अधिकारियों ने इस पर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए जिसके कारण ऐतिहासिक ढांचे के संरक्षण की दिशा में काम आगे नहीं बढ़ पाया।

    जानें क्या है इतिहास

    दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेस-वे फ्लाईओवर से रक्षा संपदा भवन के नजदीक नीचे उतरकर उलान बटार रोड से आइजीआइ टर्मिनल-1 जाने के रास्ते में यह ढांचा साफ-साफ नजर आता है। कहा जाता है कि पहले यहां सराय हुआ करती थी। इस सराय की चारदीवारी के कोनों पर बने गुबंद अभी भी यहां दूर से ही नजर आते है। हालांकि अब दो ही गुबंद बची है। अहाते में एक बारादरी भी है।

    उलान बटार रोड से द्वारका की ओर जाने के क्रम में यह सड़क के बाएं ओर करीब 10 एकड़ के परिसर फैला है। इस सराय का निर्माण मेहरम खान ने किया था। कहा जाता है कि मेरहम खान मुगल बादशाह शाहजहां और औरंगजेब के हरम का प्रभारी था। जब यहां सराय बना तो यहां आसपास एक बस्ती भी बस गई। बाद में यह गांव के तौर पर जाना जाने लगा।

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