Delhi News: बाढ़ की तबाही से बचाएगा Deep Flood App, बिहार और असम में मिले सटीक परिणाम
बाढ़ से होने वाली तबाही से बचने के लिए आईआईटी दिल्ली ने बनाया है डीप फ्लड एप। यह एप बाढ़ की स्थिति का आकलन एक मिनट में कर सकता है। जानिए कैसे काम करता है यह एप और कैसे इससे बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यो में मदद मिल सकती है। इस रिपोर्ट में आगे विस्तार से पूरी डिटेल पढ़िए।

उदय जगताप, नई दिल्ली। बिहार, बंगाल, असम, ओडिशा, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्य प्रति वर्ष बाढ़ की आपदा से जूझते हैं। कितने ही परिवार तबाह हो जाते हैं। प्राकृतिक आपदाओं को आने से तो नहीं रोका जा सकता लेकिन, उनके दुष्प्रभाव से बचाव किया जा सकता है।
बाढ़ जैसी आपदा से कितनी जानमाल की हानि होगी यदि इसका अंदाजा समय से लग जाए तो राहत कार्यों के माध्यम से स्थिति नियंत्रित की जा सकती है। ऐसी ही जानकारी के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग ने एआइ आधारित 'डीप फ्लड' एप बनाया है, जिसका प्रयोग बिहार-असम में बाढ़ के समय प्रशिक्षण के तौर पर सफल भी रहा है। इस एप के जरिये एक मिनट में 100 किलोमीटर क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति का आकलन किया जा सकता है।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की होती है बिल्कुल सटीक जानकारी
'डीप फ्लड' एप सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) तकनीक पर आधारित है। यह बेहद आधुनिक तकनीक है, जिसके माध्यम से सेटेलाइट की तस्वीरें भेजी जाती हैं। इन तस्वीरों का एप में उपयोग करके मानचित्र तैयार होता है। मानचित्र में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की बिल्कुल सटीक जानकारी होती है। एप को सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मानवेंद्र सहारिया और शोधार्थी निर्देश कुमार शर्मा ने तैयार किया है।
इस एप के बारे में निर्देश बताते हैं कि अभी तक बाढ़ आने पर सामान्य (आप्टिकल) सेटेलाइट तस्वीरों से उसका आकलन नहीं हो पाता था। आप्टिकल सेटेलाइट बाढ़ की सीमा और प्रभाव पर मूल्यवान डाटा प्रदान करते हैं, लेकिन बादलों के ऊपर, जंगलों के ऊपर और रात में संचालन करने में असमर्थता जैसी चुनौतियों भी इसके सामने हैं। इससे वास्तविक समय में बाढ़ का आकलन करना मुश्किल हो जाता है।
वहीं, एसएआर बादलों के पार, सघन जंगली इलाकों और रात की तस्वीरें लेने में सक्षम है। जब यह तस्वीरें हमारे पास आ जाती हैं, तो एआइ आधारित डीप फ्लड एप इनका इस्तेमाल कर मानचित्र तैयार करता है। इलाके में कहां तक पानी आ गया है, यह पता लग जाता है। इसके अनुरूप एजेंसी को निर्देशित कर बचाव कार्य बढ़ाया जा सकता है।
बिहार-असम में मिले थे सटीक परिणाम
एसएआर से ली जाने वाली तस्वीरों के बारे में निर्देश बताते हैं कि इन तस्वीरों को गूगल मैप की तस्वीरों की तरह से नहीं देखा जा सकता है। इसमें एक निश्चित तकनीक का इस्तेमाल कर उनका उपयोग किया जा सकता है। बिहार और असम में आई बाढ़ का इसके जरिये आकलन किया गया। इसके नतीजे सटीक रहे। इसके आकलन के क्षेत्र को और बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल एक ही ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) का इस्तेमाल किया जा रहा है। और अधिक जीपीयू के इस्तेमाल से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के 100 किलोमीटर के क्षेत्र से अधिक का आकलन किया जा सकता है।
यूरोपीय एसएआर सेटेलाइट का हुआ उपयोग
आइआइटी दिल्ली ने इस एप के जरिए बाढ़ के विश्लेषण के लिए यूरोपीय एसएआर सेटेलाइट का उपयोग किया है। भारत का भी एसएआर है और इसका एक और उन्नत रूप दो तीन महीने में लॉन्च हो जाएगा। लेकिन, सुरक्षा दृष्टि से उससे तस्वीरें मिलना मुश्किल होता है। निर्देश ने कहा, एक दशक में भारत में आई बाढ़ का डाटा एकत्र कर इसका अर्काइव बनाने की भी योजना है, ताकि इसका इस्तेमाल बाढ़ के दौरान डाटा विश्लेषण में किया जा सके।
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प्रो. मानवेंद्र सहारिया बताते हैं फिलहाल तकनीक को कहीं हस्तांतरित नहीं किया गया है। इसको और उन्नत बनाया जा रहा है। जिससे एक-एक इमारत तक की जानकारी मिल सके। इससे संबंधित शोध पत्र साइंस रिमोट सेंसिंग जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस एप को विकसित करने के लिए 'इंडिया एआइ मिशन अवार्ड' दिया गया है। हाल में, केंद्रीय इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह पुरस्कार प्रदान किया।
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