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    बदलते बारिश पैटर्न से निपटने की तैयारी, बादलों को इधर-उधर भेज सकेगा क्लाउड चैंबर

    By sanjeev Gupta Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Tue, 20 May 2025 09:10 PM (IST)

    मौसम विभाग जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते बारिश के पैटर्न से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम कर रहा है। पुणे स्थित आईआईटीएम में क्लाउड चैंबर स्थापित किया जा रहा है जहां बादलों पर शोध होगा। ज्यादा बारिश वाले बादलों को कम बारिश वाले क्षेत्रों में भेजने की तैयारी है। साथ ही बिजली गिरने और कोहरे की समस्या से निपटने के लिए भी शोध किया जाएगा।

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    जल्द ही बादलों को इधर-उधर भेज सकेगा क्लाउड चैंबर। फाइल फोटो

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव मौसम चक्र को प्रभावित करने के साथ ही बारिश के पैटर्न को भी बदल रहे हैं। मात्रा के लिहाज से भले ही अभी भी पूरे साल और मानसून के दौरान सामान्य बारिश हो रही हो, लेकिन इसका वितरण असमान हो गया है।

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    कहीं बारिश बहुत ज्यादा हो रही है तो कहीं बहुत कम। कहीं भूजल स्तर में कोई सुधार नहीं हो रहा है तो कहीं यह पानी व्यर्थ बह जाता है। कृषि क्षेत्र के लिए भी समस्या खड़ी हो गई है। भविष्य में इस समस्या के गंभीर होने की आशंका को देखते हुए मौसम विभाग क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम करने की तैयारी कर रहा है।

    बादलों पर शोध किया जाएगा

    जानकारी के अनुसार, मौसम विभाग की शोध शाखा भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे में क्लाउड चैंबर स्थापित किया जा रहा है। इस चैंबर में बादलों पर शोध किया जाएगा।

    मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बादलों का आधार आमतौर पर धरती की सतह से एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर होता है, लेकिन उनकी ऊंचाई 12 से 13 किलोमीटर तक हो सकती है। अब देश को ऊंचाई में होने वाले बदलावों के लिए तैयार किया जाएगा।

    इसमें नमी, हवा की गति और तापमान का आकलन शामिल होगा। बादलों का घनत्व कम करने के लिए उन इलाकों की ओर अधिक बारिश वाले बादलों को भेजने की कोशिश की जाएगी, जहां बारिश कम होती है।

    दर साल बदल रहा बारिश का पैटर्न

    मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि साल दर साल बारिश का पैटर्न बदल रहा है। इस पैटर्न को समझने और इस बदलते पैटर्न से निपटने की तैयारी है। दूसरे चरण में बिजली गिरने की समस्या से निपटने पर काम होगा। इसमें बादलों से जमीन पर गिरने वाली बिजली को बादल से बादल की तरफ शिफ्ट करने पर शोध किया जाएगा। इस समय देश में बिजली गिरने से काफी नुकसान हो रहा है।

    दूसरे चरण में कोहरे की समस्या से निपटने पर भी शोध किया जाएगा। इससे कोहरे को कम करने की तैयारी होगी। बारिश का बदलता पैटर्न उनके पूर्वानुमान में चुनौतियां खड़ी कर रहा है। कई बार ऐसा होता है कि बादल ऊंचाई पर बनते हैं और बारिश करा देते हैं, लेकिन जमीन की सतह तक पहुंचते-पहुंचते भाप बन जाते हैं और जमीन पर बारिश नहीं हो पाती।

    IIITM पुणे परिसर में क्लाउड चैंबर के लिए जगह चिन्हित कर ली गई है। अब टेंडर प्रक्रिया चल रही है। टेंडर मिलने के बाद करीब आठ महीने में क्लाउड चैंबर बनकर तैयार हो जाएगा। इसके बाद क्लाउड सीडिंग तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर शोध शुरू हो जाएगा।

    - रविचंद्रन, सचिव, केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय

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