देश के 58 संगठन हुए एकजुट, मिलकर तैयार किया ‘श्वेत-पत्र’; भारत के हर नागरिक से जुड़ा है मामला
देश के 58 संगठन राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनकैप) को और प्रभावी बनाने के लिए एकजुट हुए हैं। उन्होंने मिलकर एक श्वेत-पत्र तैयार किया है जिसमें एनकैप-2.0 को अधिक महत्वाकांक्षी और जवाबदेह बनाने के लिए सिफारिशें हैं। इसका लक्ष्य देश के हर नागरिक को साफ हवा में सांस लेने का अधिकार दिलाना है। श्वेत-पत्र में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सुधार पर जोर दिया गया है।

संजीव गुप्ता नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनकैप) को अगले चरण में अधिक असरदार बनाने के लिए देश के 58 संगठन एकजुट हुए हैं। सभी ने मिलकर एक ‘श्वेत-पत्र’ तैयार किया है, जिसमें एनकैप-2.0 के लिए आवश्यक प्राथमिकताएं रेखांकित करते हुए महत्वपूर्ण सिफारिशें की गई हैं। ऐसा इसलिए ताकि उसे अधिक महत्वाकांक्षी, जवाबदेह और प्रभावी बनाया जा सके और देश का हर नागरिक साफ हवा में सांस ले सके।
दरअसल, एनकैप में शामिल देश के अधिकांश शहरों में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों का लगातार उल्लंघन हो रहा है। जबकि, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में तो वायु गुणवत्ता निगरानी की कोई व्यवस्था ही नहीं है।
देश की 146 करोड़ की आबादी (यूएनएफपीए की विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट-2025 के अनुसार) के लिए साफ हवा में सांस लेना सुनिश्चित हो जाए, इसके लिए सख्त कदम उठाने होंगे।
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देश के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर एकता के प्रतीक रूप में इन संगठनों ने मिलकर ‘श्वेत पत्र’ को अंतिम रूप दिया है। देश में यह अपनी तरह की ऐसी पहली संयुक्त पहल है। इस ‘श्वेत पत्र’ में वायु गुणवत्ता क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर की गई व्यावहारिक सिफारिशों को शामिल किया गया है। यह ‘श्वेत पत्र’ एनकैप के निदेशक पझनियांदी वेलायुधन पिल्लई (आइआरएस) को भेजा गया है।
वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से की गईं प्रमुख सिफारिशें
- भौगोलिक पहुंच का विस्तार : एनकैप 2.0 का दायरा 130 शहरों से आगे बढ़ाया जाए। शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को भी इसके दायरे में लाया जाए। इसके लिए एयरशेड-आधारित दृष्टिकोण (एप्रोच) का उपयोग किया जाए। राज्यव्यापी वायु गुणवत्ता निगरानी को बढ़ाया जाए।
- गवर्नेंस माडल को मजबूत करना : एक मिला-जुला गवर्नेंस माडल अपनाया जाए।
- संस्थागत समर्थन : प्रदूषण नियंत्रण मंडलों, शहरी स्थानीय निकायों और संबंधित विभागों में तकनीकी और रेगुलेटरी (नियामकीय) सुधार किए जाएं।
- साइंटिफिक टारगेटिंग और माडलिंग : पीएम2.5 से जुड़े लक्ष्य तय करने के लिए राज्य-स्तरीय माडलिंग का उपयोग किया जाए और उत्सर्जन सूची तैयार की जाए। मतलब किस अवधि में, किन क्षेत्रों में किन-किन स्रोतों से वायु प्रदूषण होता है, इसकी मुकम्मल जानकारी जुटाकर सूची बनाई जाए। फिर उसी के अनुरूप तयशुदा लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्यान्वयन प्रक्रिया अपनाई जाए।
- मजबूत निगरानी और उत्सर्जन सूची : कम लागत वाले सेंसरों का उपयोग करके निगरानी नेटवर्क का विस्तार किया जाए। डेटा पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और एक मानकीकृत सेंट्रलाइज्ड राष्ट्रीय उत्सर्जन सूची बनाई जाए।
वायु प्रदूषण अब बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक में रह रहे हर भारतीय परिवार पर असर डाल रहा है। इसीलिए समय आ गया है कि एनकैप 2.0 को एक संवेदनशील नेतृत्व गाइड करे। उसमें वैज्ञानिक स्पष्टता हो और उससे संबंधित निगरानी नेटवर्क का ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तार किया जाए। हमें यह मानना होगा कि वायु प्रदूषण किन्हीं प्रशासनिक सीमाओं तक सीमित नहीं है। - डॉ साग्निक डे, वायु गुणवत्ता विशेषज्ञ, आइआइटी दिल्ली
सहयोग की भावना को एनकैप 2.0 के मूल में होना चाहिए। सरकारों, वैज्ञानिक संस्थानों, उद्योगों और नागरिक समाज को एक साझा जवाबदेही ढांचे के अंतर्गत जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा ढांचा, जो वास्तविक समय के पारदर्शी आंकड़ों पर आधारित हो। इससे नीतिगत मंशा और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के बीच लंबे समय से चली आ रही खाई को पाटा जा सकेगा।" - सुनील दहिया, संस्थापक एवं प्रमुख विश्लेषक, एनवायरोकैटालिस्ट्स

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