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...आज फिर जीने की तमन्ना है, सुरों के दरिया में नहीं रह गया तेरा-मेरा

सुरों के इस दरिया में तेरा-मेरा नहीं रह गया था। एक साथ निकलती आवाज ने दिलों को तो बहलाया ही एकता के अहसास को भी बुलंदी दी।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 09 Dec 2017 02:20 PM (IST)Updated: Sat, 09 Dec 2017 06:59 PM (IST)
...आज फिर जीने की तमन्ना है, सुरों के दरिया में नहीं रह गया तेरा-मेरा
...आज फिर जीने की तमन्ना है, सुरों के दरिया में नहीं रह गया तेरा-मेरा

नई दिल्ली [जेएनएन]। सर्द शाम में बहती ठंडी हवा जज्बातों को टटोल रही थी तो वहीं मेजर ध्यान चंद स्टेडियम में सजे जश्न-ए-रेख्ता के स्टेज पर घंटों आंख मिचौली करती प्रकाश व्यवस्था लोगों के सब्र का इम्तिहान ले रही थी। लेकिन, होली के रंगों में, दिवाली के दीयों में, ईद की सेवइयों में मिठास घोलती उर्दू का ही यह असर था कि लोग कुर्सियों पर न सिर्फ जमे रहे बल्कि उर्दू की शोख गुफ्तगू का लुत्फ लेते रहे।

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टूटे और बिखरे इंसानी जज्बातों को जोड़ती उर्दू अंधेरे में भी रोशन हुई और रेख्ता के संस्थापक डॉ संजीव सराफ का संबोधन लोगों ने चाव से सुना। तीन दिवसीय जश्न-ए-रेख्ता के आगाज में पदम विभूषण पंडित जसराज, अभिनेत्री वहीदा रहमान भी शामिल हुईं। पाकिस्तान के हाई कमिश्नर सुहैल महमूद भी महफिल की शान में मौजूद थे।

सुरों के दरिया में तेरा-मेरा नहीं रह गया 

जश्न-ए-रेख्ता का आगाज शाम छह बजे ही होना था, लेकिन तकनीकि खामियों ने डेढ़ घंटे की देरी करा दी। लोगों के लिए ये इंतजार भी सुकून और सुरों से भरपूर रहा। आवाज की नरमी और मखमली अंदाज को माइक की क्या जरूरत? कुछ कदमों ने मंच की ओर रुख किया और सुर दिलों तक का रास्ता तय करने निकल पड़े।

महफिल में कभी मनोज कुमार तो कभी शशि कपूर अभिनीत फिल्मों के गानों का सिलसिला चल निकला और जश्न-ए-रेख्ता का एक और कलेवर सामने अपनी रंगत बिखेर गया। सुरों के इस दरिया में तेरा-मेरा नहीं रह गया था। एक साथ निकलती आवाज ने दिलों को तो बहलाया ही एकता के अहसास को भी बुलंदी दी।

आज फिर जीने की तमन्ना है

संस्थापक संजीव सराफ ने अंधेरे में ही उद्बोधन किया। गंगा जमुनी तहजीब को जीता जश्न-ए-रेख्ता शुरू हुआ तो पंडित जसराज ने शुरुआत जय से की फिर आदाब कहकर संबोधन शुरू किया। कहा कि, देश में बहुत सी भाषाएं देखरेख के अभाव में मर सी जाती हैं। उर्दू को आम जन मानस में जिंदा रखने के लिए की गई यह पहल तारीफ के काबिल है। उन्होंने लोगों को उर्दू से जोड़ने के लिए फिल्मों की तारीफ भी की और बड़ी ही जिंदादिली से कहा आज फिर जीने की तमन्ना है।

उर्दू में तहजीब और नजाकत होती है

अभिनेत्री वहीदा रहमान ने कहा कि मुद्दतों के बाद उर्दू समारोह में इतनी भीड़ दिखी है। उर्दू में तहजीब और नजाकत होती है। यहीं वजह है कि इश्क में पड़ा शख्स शायरी करना चाहता है। उन्होंने कहा कि उर्दू के चाहने वाले सिर्फ दिल्ली में नहीं है, वो कर्नाटक से जापान तक अपनी जगह बनाए हुए हैं। एक वाकया सुनाते हुए उन्होंने कहा कि कर्नाटक के एक मुख्यमंत्री ने तो जेल में उर्दू सीखी।

उर्दू एक धर्म विशेष की जुबान

वहीदा रहमान ने कहा कि जब उन्होंने बॉलीवुड में काम करना शुरू किया था, उस समय बॉलीवुड के 80 फीसद निर्देशक, गीतकार, संगीतकार, अभिनेता उर्दू पढ़ते और लिखते थे। यहां तक की सुपर स्टार देवानंद, मनोज कुमार, धर्मेद्र भी उर्दू के कद्रदान रहे हैं। बंटवारे के बाद ना जाने कहां से यह गलतफहमी समाज में आ गई कि उर्दू एक धर्म विशेष की जुबान है। यह पूरी तरह गलत है।

शाम बाकी है और जश्न जारी है

इसके बाद जश्न-ए-रेख्ता का पूरी रौ में आगाज हो चुका था जिसकी शान को बुलंदी देने का जिम्मा उस्ताद राशिद खान के कंधों पर था। उस्ताद ने इस जिम्मेदारी को बेहतर निभाया और लोगों ने उनके फन का आनंद लिया। शाम बाकी है और जश्न जारी है। 

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