रंगकर्मी दानिश इकबाल ने कहा- युवा मन में हरारत की खुराक है जश्न-ए-रेख्ता
मैं तीन साल से मुहब्बत की शायरी आयोजन कर रहा हूं। बस हर बार इसकी अलग थीम होती है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। जश्न-ए-रेख्ता। युवा मन में जब हरारत सी होती है तो दवा की नहीं कविता की जरूरत होती है। थकान, नज्मों की खुराक से मिटती है। एक खूबसूरत मन को आनंदित कर देने वाले माहौल की जरूरत होती है। यही सब मौजूद है इस जश्न-ए-रेख्ता महोत्सव में। साहित्य, संगीत, फिल्म, कला, रंगमंच, नृत्य, मौखिक कहानी जैसी हर दवा मिल जाएगी मर्ज को काफूर करने के लिए। ताकि युवा मन पर झुर्रियां न पड़ें उनके लिए और क्या-क्या खास है इस बार के आयोजन में। इसी परिप्रेक्ष्य में लेखक और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के प्रो. दानिश इकबाल से जागरण की संवाददाता मनु त्यागी की विशेष बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :
1-रेख्ता का विस्तार कैसे हुआ?
-इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जब रेख्ता का पहला आयोजन हुआ था तो वहां उम्मीद से ज्यादा लोग पहुंचे थे। लोगों के उत्साह का स्वागत तो हुआ, लेकिन उस सेंटर ने हमें अगली दफा से आयोजन कहीं और कराने की सलाह दे दी। पिछले साल आयोजन में एक लाख प्रशंसक पहुंचे थे। इस बार इससे भी ज्यादा पहुंचने की उम्मीद है। इस आयोजन की सबसे खास बात यह है कि इससे युवा वर्ग जुड़ा है। बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनलकंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर देशभर के बड़े विश्वविद्यालयों, आइआइटी, आइआइएम और दिल्ली विवि सब जगह से छात्र इस आयोजन में बड़े उत्साह के साथ पहुंचते हैं।
2. साहित्य, कविता, रंगमंच ने आखिर युवा मन में कैसे जगह बनाई?
-रेख्ता के ऑनलाइन होने की इसमें सबसे अहम भूमिका रही। पेशेवर हों या कॉलेज जाने वाले छात्र, हर किसी को अपने मोबाइल या लैपटॉप में एक क्लिक पर कविता, साहित्य सब मिल जाता है। और किसी भी आयोजन का संवेष्टन, पैकेजिंग भी बहुत मायने होती है। रेख्ता के मंच को बेहद करीने से सजाया जाता है। वैसे भी वह इसे फर्ज के लिए नहीं शौक के लिए सुन रहा है। यह आयोजन इस धारणा को भी तोड़ता है कि आज का युवा साहित्य की दुनिया से ताल्लुक नहीं रखता।
3. युवा का वहां मौजूद होना और साहित्य को समझना आप इससे कितना इत्तेफाक रखते हैं?
-दिल्ली-एनसीआर के परिवेश में एक चीज नोटिस की होगी कि जब किसी युवा को ऑफिस या घर के कारण कैसा भी तनाव होता है तो वह दोस्तों के साथ तरह-तरह की पार्टी कर उसे मुक्ति पाने या भूलने के तरीके ढूंढता है। एक युवा वर्ग इस आयोजन में भी आता है और वह भी इसी तनाव से कविता, साहित्य आदि के जरिये अपनी थकान मिटाना चाहता है। यहां उसे घर से दफ्तर तक की जीवन शैली को बहुत नम्रता से जीने की कला मिल जाती है। वह भले अपना कुछ नया नहीं लिख रहा है, लेकिन वह उसे समझ रहा है गुन रहा है। तभी तो इस खुले मंच पर वह भी कविता कहता है। आपको थोड़ी हैरानी हो सकती है यह जानकर कि सबसे अधिक कविता के प्रशंसक आइआइटी से हैं, किसी विश्वविद्यालय के हिंदी, साहित्य विभाग से नहीं।
4.महोत्सव में प्रस्तुतियों का चयन कैसे किया जाता है?
-यह आयोजन कोई रीति, परंपरा पर आधारित नहीं है कि इस बार फलां बड़े साहित्यकार की कहानियों या कविताओं का ही रसपान किया जाएगा। किस तरह के प्रोग्राम इस आयोजन में किए जाएं वह हम सब नेटवर्किंग के जरिये और सलाह मशविरा करके तय कर लेते हैं। वैसे भी यह तो खुला मंच है और अब इसे कम्युनिटी की तरह भी कह सकते हैं। जहां युवाओं के साथ संभ्रात वर्ग के लोग भी पहुंचते हैं।
5.कौन से आयोजन यहां होंगे?
-10 दिसंबर को मेरे दो प्रोग्राम हैं। मैं तीन साल से मुहब्बत की शायरी आयोजन कर रहा हूं। बस हर बार इसकी अलग थीम होती है। इस दफा हमने 'क्या बदलाव आ रहे हैं प्यार की कविता में' थीम रखी है। दूसरा फैज अहमद (अविभाजित भारत के दौर के बड़े कवि थे) की कविताओं और संगीत पर मेरा एक आयोजन होगा। मेरे निर्देशन में आमिर रजा हुसैन और राधिका इसे प्रस्तुत करेंगे।
6.अभी फिलहाल आप क्या लिख रहे हैं?
मैं नाट्य निर्देशक की मांग के अनुरूप नाटक लिखता हूं। यानी ऑन डिमांड प्ले स्क्रिप्ट। हाल ही में मैंने महाभारत का उर्दू में नाटक लिखा है। इसके कई सराहनीय सफल मंचन भी हो चुके हैं और उर्दू में ही रामायण पर लिखने की तैयारी है। यह सब मेरे शोध और अध्ययन से ही संभव हो पाता है।