दिल्ली में शॉपिंग मॉल परियोजना में 100 करोड़ का घपला! जांच की मांग पर हाईकोर्ट ने CBI से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा है जिसमें दिल्ली के एक शॉपिंग मॉल परियोजना में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग की गई है। याचिका में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई है। आरोप है कि मॉल के संचालन में धोखाधड़ी हुई और सरकारी अधिकारियों ने मिलकर करोड़ों का घोटाला किया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी में एक शॉपिंग माल परियोजना के संचालन में भ्रष्टाचार और वित्तीय कदाचार के आरोपों की जांच की मांग करने वाली याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी किया, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आपराधिक दंड कानून के प्रविधानों के तहत एक प्राथमिकी दर्ज करने की भी मांग की गई है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 मई को तय की है।
मॉल के संचालन और प्रबंधन में अवैध धोखाधड़ी
याचिका में आरोप लगाया गया कि पश्चिमी दिल्ली में स्थित मॉल के संचालन और प्रबंधन में अवैध धोखाधड़ी की गतिविधियां की गई हैं। आरोप लगाया गया है कि कई सरकारी अधिकारी, रियल एस्टेट डेवलपर्स, कार्पोरेट किराएदार और सब-रजिस्ट्रार भी करोड़ों रुपये के भूमि घोटाले में शामिल थे।
संपत्ति में अवैध रूप से तीसरे पक्ष के हितों को बनाने की साजिश
इसमें आरोप लगाया गया है कि कार्पोरेट संस्थाओं, उनके निदेशकों, सरकारी अधिकारियों और उप-पट्टेदारों ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा इसके स्थायी पट्टा विलेख को समाप्त करने के बावजूद सार्वजनिक खजाने को धोखा देने और संपत्ति में अवैध रूप से तीसरे पक्ष के हितों को बनाने की साजिश रची है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने दलील दी कि 6085 वर्ग मीटर के भूखंड के लिए मूल स्थायी पट्टा 2007 में डीडीए द्वारा दिया गया था।
डीडीए ने जनवरी 2020 में पट्टे को समाप्त कर दिया
हालांकि, 25 करोड़ रुपये से अधिक की राशि के भू-किराए और रूपांतरण शुल्क सहित बकाया राशि का भुगतान न करने के कारण, डीडीए ने जनवरी 2020 में पट्टे को समाप्त कर दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इसके बावजूद, रियल एस्टेट फर्म के निदेशक ने दूसरों के साथ मिलीभगत करके शेल कंपनियों का उपयोग करके रद की गई भूमि पर अनधिकृत संचालन जारी रखा।
याचिका में दावा किया गया है कि 100 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय धोखाधड़ी हुई है, जिससे भूमि किराए सहित बकाया राशि का भुगतान न किए जाने से सरकारी खजाने को नुकसान हुआ है।
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