CBI-ED में हो रहे भ्रष्टाचार पर हाईकोर्ट की टिप्पणी, जांच तंत्र की विश्वसनीयता पर उठाए सवाल
दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल उठाए हैं। रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार अधिकारियों को रिमांड पर भेजते हुए अदालत ने जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार ने जांच तंत्र की पूरी व्यवस्था को हिला दिया है। यह मामला विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच एक बड़ी साजिश को दर्शाता है।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। सीबीआइ और ईडी जैसी देश शीर्ष जांच एजेंसियों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर दिल्ली हाई कोर्ट गंभीर सवाल उठाया है। मामले को निपटाने का दावा कर शिकायतकर्ता से रिश्वत मांगने के मामले में गिरफ्तार किए गए तीन अधिकारियों को दो दिन के सीबीआइ रिमांड पर भेजते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने जांच एजेंसियों की विश्ववसनीयता पर तल्ख टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति नीता बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि सीबीआइ, ईडी और अन्य सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक अनूठा मामला है, जिसने हमारी कार्यपालिका और जांच तंत्र की पूरी संरचना को हिलाकर रख दिया है, जबकि, इन एजेंसियों की प्राथमिक जिम्मेदारी अपराध की जांच कर दोषियों को सजा दिलवाना है।
अदालत ने कहा कि शिकायत में किए गए दावों से पता चलता है कि यह किसी सरकारी अधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार का एक मामला नहीं है बल्कि विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच एक बड़ी साजिश को दर्शाता है। अदालत ने कहा कि आरोपी संबंधित पक्ष को अनुचित लाभ पहुंचाने और सरकारी विभागों के कामकाज को प्रभावित करने और उसमें हस्तक्षेप करने के लिए रिश्वत लेते हैं।
अदालत ने कहा कि पुलिस हिरासत से इनकार करने से निष्पक्ष और प्रभावी जांच में बाधा आती है और हिरासत न देने से जांच एजेंसी का पूछताछ करने का अधिकार समाप्त हो जाता है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी सीबीआई की अपील याचिका पर की, जिसमें आरोपियों को रिमांड पर भेजने से इनकार करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) की धारा 61 (2) (आपराधिक साजिश) के साथ-साथ धारा 7 (लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित अपराध), धारा 7 ए (भ्रष्ट या अवैध तरीकों से लोक सेवक को प्रभावित करने के लिए अनुचित लाभ उठाना), धारा 12 (अपराधों को भड़काने की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने पाया कि प्रस्तुत तथ्यों को देखते हुए पूरा मामला सरकारी एजेंसियों में व्यापक भ्रष्टाचार से जुड़ा है और रिश्वत लेने वाले अधिकारियों के बीच की साजिश को उजागर करने के लिए हिरासत की आवश्यकता है।
कोर्ट ने तथ्यों को किया नजरअंदाज: सीबीआइ
सीबीआई ने आरोपियों की हिरासत की मांग करते हुए कहा कि मामले से जुड़े तथ्यों से कई विभागों और एजेंसियों में फैली एक बड़ी साजिश का पता चलता है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने जांच में सामने आए महत्वपूर्ण तथ्यों और भौतिक साक्ष्यों को नजरअंदाज कर दिया। वहीं, आरोपियों ने दलील दी कि सीबीआई उनसे सिर्फ कबूलनामा निकलवाने के लिए हिरासत की मांग कर रही है।
रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया आरोपित
याचिका के अनुसार 8 अप्रैल 2025 को शिकायतकर्ता हिमांशु नानावटी ने एक शिकायत की, जबकि वह एक अन्य मामले में आरोपी है। उक्त मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। शिकायत के अनुसार आरोपी अवनीश कुमार ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताते हुए शिकायतकर्ता को एक अन्य सीबीआई अधिकारी अनिल तंवर से मिलवाया।
अवनीश ने कहा था कि अनिल तंवर उसका मामला सुलझा देगा और बदले में 50 लाख रुपये की रिश्वत मांगी गई थी। दोनों के बीच 35 लाख रुपये में बातचीत तय हुई और अनिल तंवर ने शिकायतकर्ता को अवनीश के संपर्क में रहने को कहा था।
अवनीश ने शिकायतकर्ता को एक अन्य सीबीआई अधिकारी रमेश कुमार से मिलवाया, जिसने उससे 10 लाख रुपये की रिश्वत मांगी। शिकायतकर्ता ने इसकी शिकायत सीबीआई मुख्यालय में की और शिकायत का सत्यापन करने पर प्रथम दृष्टया तीनों के खिलाफ आरोप सही पाए गए सीबीआई ने सुनियोजित तैयारी के साथ आरोपी अवनीश को आरोपी अनिल तंवर से 3.5 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा।
इसके बाद 9 अप्रैल 2025 को आरोपी रमेश को गिरफ्तार कर लिया गया। जांच के दौरान आरोपी अवनीश के पास से सीबीआई, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), हरियाणा स्टेट नारकोटिक्स के पहचान पत्र बरामद हुए। सीबीआई ने कहा कि आरोपियों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ करने की जरूरत है।
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