'दूसरे अपराध में शामिल होने के आधार पर नहीं ठहराया जा सकता दोषी', ट्रायल कोर्ट के फैसले पर दिल्ली HC की टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने लूट के मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ दूसरे मामलों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अभियोजन पक्ष को वर्तमान मामले में दोष साबित करने के लिए तथ्य पेश करने होंगे। अदालत ने 2015 के एक मामले में अपीलकर्ता को बरी कर दिया क्योंकि पिस्टल की जब्ती पर संदेह था।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। लूट के मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए जाने के निर्णय को रद करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपित के खिलाफ अन्य मामले दर्ज होने के आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने कहा कि इसके लिए अभियोजन पक्ष को वर्तमान मामले में दोषी करार देने के लिए तथ्य पेश करने होंगे।
अदालत ने कहा कि किसी दोषपूर्ण साक्ष्य के अभाव में वर्तमान मामले में अपराधों के लिए अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को केवल बैलिस्टिक रिपोर्ट के आधार पर बरकरार नहीं रखी जा सकती।
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए वर्ष 2015 में दर्ज किए गए लूट से जुड़े मामले में अपीलकर्ता को बरी कर दिया। अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को ठुकरा दिया कि अपीलकर्ता के आचारण पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि उस पर हत्या का प्रयास सहित कई समान प्रवृत्ति के आपराधिक मामलों में शामिल होने का आरोप है।
हालांकि, पीठ ने रिकार्ड पर लिया कि दाखिल की गई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार कई मामलों में आरोपित बरी हो चुका है, जबकि अन्य मामले में वह जमानत पर बाहर है। अदालत ने कहा कि एकमात्र दोषपूर्ण साक्ष्य बैलिस्टिक रिपोर्ट ही है, लेकिन इसमें पिस्टल की जब्ती के बारे पर संदेह है।
अपीलकर्ता ने वर्ष 2015 में दर्ज हुए लूट के मामले में ट्रायल कोर्ट के अप्रैल 2022 के निर्णय को चुनौती दी थी। जिसमें उसे दोषी करार दिया गया था। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 22 गवाहों से पूछताछ की थी।
अक्टूबर 2015 में अपीलकर्ता को किसी अन्य मामले में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उसके पास से एक पिस्टल व चार कारतूस बरामद किए थे। मामले में आरोपपत्र दाखिल कर पुलिस ने अपीलकर्ता पर लूट के मामले में शामिल होने का आरोप लगाया था।
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