हड्डी रोग से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए राहत की खबर, शोधकर्ताओं ने पाई ये बड़ी सफलता
एम्स दिल्ली सीडीआरआई लखनऊ और आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने हड्डी रोगों के इलाज में सफलता पाई है। उन्होंने स्क्लेरोस्टिन प्रोटीन से एससी-1 और एससी-3 नामक पेप्टाइड्स विकसित किए हैं जिनका चूहों पर परीक्षण सफल रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी बीमारियों का इलाज संभव हो सकेगा। क्लीनिकल ट्रायल के बाद यह दवा मरीजों के लिए उपलब्ध हो सकती है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। आस्टियोपोरोसिस और आस्टियोआर्थराइटिस जैसे हड्डी रोग से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए भारत से राहत भरी खबर आई है।
एम्स दिल्ली, लखनऊ के सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) और आइआइटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
शोधकर्ताओं ने स्क्लेरोस्टिन प्रोटीन से एससी-एक और एससी-तीन नामक पेप्टाइड्स (अमीनो एसिड की छोटी श्रृंखलाएं) विकसित की हैं। इनका चूहों पर प्री-क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है और परिणाम बेहद उत्साहजनक पाए गए हैं।
यह शोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित जर्नल बायोमेडिसिन एंड फार्माकोथेरेपी में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस खोज से हड्डी और जोड़ों की बीमारियों के उपचार की दिशा ही बदल सकती है।
एम्स दिल्ली के बायोटेक्नोलाजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. रुपेश श्रीवास्तव ने बताया कि शरीर में मौजूद स्क्लेरोस्टिन प्रोटीन का असर आस्टियोपोरोसिस और आस्टियोआर्थराइटिस दोनों बीमारियों पर पड़ता है। अब तक इस दिशा में किसी ने ठोस खोज नहीं की थी।
बताया गया कि तीन से पांच साल के लंबे अध्ययन के बाद एससी-एक और एससी-तीन पेप्टाइड्स की पहचान हुई। उन्होंने कहा, “मौजूदा दवाएं हर मरीज पर कारगर साबित नहीं होतीं। लेकिन, एससी-एक और एससी-तीन ऐसे विकल्प हो सकते हैं, जिनसे ज्यादा प्रभावी इलाज संभव होगा। हालांकि इसके लिए अभी क्लीनिकल ट्रायल जरूरी है।”
विरोधाभासी भूमिका से मिली प्रेरणा
सीडीआरआइ लखनऊ से सेवानिवृत्त मुख्य वैज्ञानिक डा. नायबेद्य चट्टोपाध्याय ने बताया कि स्क्लेरोस्टिन प्रोटीन हड्डी कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है और इसकी भूमिका विरोधाभासी है। “आस्टियोपोरोसिस में यह हड्डी निर्माण रोकता है, जबकि आस्टियोआर्थराइटिस में असामान्य हड्डी वृद्धि को रोककर उपास्थि ऊतक की रक्षा करता है। इसी आधार पर हमने ऐसे पेप्टाइड्स डिजाइन किए जो दोनों स्थितियों से निपटने में मददगार हो सकते हैं।”
ट्रायल में कैसे मिला लाभ
न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस और आणविक माडलिंग तकनीक से शोधकर्ताओं ने तीन संभावित पेप्टाइड्स डिजाइन किए। इनमें एससी-एक ने हड्डी निर्माण को प्रोत्साहित किया और एससी-तीन ने आस्टियोआर्थराइटिस को बढ़ने से रोका। सबसे खास बात यह रही कि जब एससी-तीन को विशेष शीयर-थिनिंग हाइड्रोजेल से दिया गया तो एक ही इंजेक्शन ने आठ हफ्तों की खुराक जितना असर दिखाया। यह मरीजों को बार-बार इंजेक्शन लेने से बचा सकता है और उनकी तकलीफ काफी कम हो सकती है।
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क्लीनिकल ट्रायल और होंगे
इस शोध में आइआइटी खड़गपुर के डा. शिवेंदु रंजन और उनकी टीम ने भी अहम योगदान दिया। वैज्ञानिकों ने बताया कि अब अगला चरण विषविज्ञान अध्ययन और मानव पर क्लीनिकल ट्रायल का होगा। यदि ये सफल रहे तो दुनिया भर में लाखों मरीजों को नई उम्मीद मिलेगी।
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