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    Delhi Chunav: भाजपा के लिए क्यों चुनौती बनी ये सीट? सिर्फ एक बार खिला 'कमल'; इस बार भी होगी कांटे की टक्कर

    Updated: Thu, 26 Dec 2024 09:38 AM (IST)

    त्रिलोकपुरी सीट पर भाजपा का सिक्का सिर्फ एक बार ही चल सका है। 1993 से अब तक हुए सात चुनावों में से सिर्फ 2008 में भाजपा के सुनील कुमार जीते थे। बाकी सभी चुनावों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का कब्जा रहा है। इस बार फिर से त्रिलोकपुरी सीट पर बीजेपी और आप के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी।

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    दिल्ली में त्रिलोकपुरी सीट भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। फाइल फोटो

    आशीष गुप्ता, पूर्वी दिल्ली। त्रिलोकपुरी सीट भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। अब तक हुए सात विधानसभा चुनावों में से भाजपा सिर्फ एक बार ही यहां कमल खिला पाई है। वर्ष 2008 में मिली एकमात्र सफलता भी मामूली अंतर से हाथ लगी थी, तब सुनील कुमार 634 मतों से विजयी हुए थे।

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    1993 में अस्तित्व में आई थी त्रिलोकपुरी सीट 

    राष्ट्रीय राजधानी में विधानसभा के गठन के साथ ही वर्ष 1993 में त्रिलोकपुरी सीट अस्तित्व में आई थी। शुरुआत से यह अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट रही है। यहां के पहले विधायक ब्रह्मपाल निर्वाचित हुए थे, जो कांग्रेस से थे। इस सीट पर जीत का हैट्रिक का खिताब उनके ही पास है। वह वर्ष 1998 और 2003 का चुनाव भी जीते थे।

    634 मतों के अंतर से खिला था भाजपा का कमल 

    शुरुआती तीनों चुनावों में भाजपा दूसरे पायदान पर रही थी। 2008 में हुए चौथे चुनाव में भाजपा के सुनील कुमार को सफलता मिली थी। सुनील को 30,781 मत मिले थे, जबकि उनकी प्रतिद्वंदी रहीं कांग्रेस की अंजना को 30,147 मत मिले थे। 634 मतों के अंतर से यहां भाजपा का कमल खिला था।

    इसके बाद वर्ष 2013, 2015 और 2020 में हुए चुनाव में यह सीट लगातार आम आदमी पार्टी (आप) के खाते में गई। आप से दो बार राजू धींगान विधायक रहे, जबकि वर्तमान में रोहित मेहरौलिया विधायक हैं।

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    सुनील की पत्नी को दिया टिकट

    दिसंबर 2014 में भाजपा के विधायक रहे सुनील कुमार का निधन हो गया था। भाजपा ने वर्ष 2015 और 2020 के चुनावी मैदान में त्रिलोकपुरी सीट पर सुनील की पत्नी किरण वैद्य को उतारा था।

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    दूसरी बार काटा मौजूदा विधायक का टिकट

    त्रिलोकपुरी सीट पर दो बार से नया ट्रेंड सामने आ रहा है। आप ने वर्ष 2020 में तत्कालीन विधायक राजू धींगान को टिकट न देकर उस वक्त के पार्षद रोहित मेहरौलिया पर विश्वास किया था। यह विश्वास खरा भी उतरा। मेहरौलिया जीते थे। इस बार आप ने विधायक मेहरौलिया को टिकट न देकर अंजना पारचा को मैदान में उतारा है। अंजना करीब साढ़े तीन साल पहले ही कांग्रेस से आप में आई हैं।

    ये निवार्चित हुए विधायक

    वर्ष जीते प्रतिद्वंदी

    • 1993 ब्रह्मपाल (कांग्रेस) राम चरण गुजराती (भाजपा)
    • 1998 ब्रह्मपाल (कांग्रेस) राम चरण गुजराती (भाजपा)
    • 2003 ब्रह्मपाल (कांग्रेस) सुनील कुमार (भाजपा)
    • 2008 सुनील कुमार (भाजपा) अंजना पारचा (कांग्रेस)
    • 2013 राजू धींगान (आप) सुनील कुमार (भाजपा)
    • 2015 राजू धींगान (आप) किरण वैद्य (भाजपा)
    • 2020 रोहित मेहरौलिया (आप) किरण वैद्य (भाजपा)