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    खतरे की घंटी, अरावली को नहीं सहेजे तो राजस्‍थान की गरम हवाआें की जद में होगा हरियाणा

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Fri, 11 May 2018 11:19 AM (IST)

    पुलिस ने अरावली में 35 अवैध खनन के मामले दर्ज किए हैं। इसके अलावा पुलिस की नजर से इतर अरावली में जो खनन होता है उसके निशान जगह-जगह देखने को मिलते हैं।

    खतरे की घंटी, अरावली को नहीं सहेजे तो राजस्‍थान की गरम हवाआें की जद में होगा हरियाणा

    नई दिल्ली [बिजेंद्र बंसल]। दिल्ली एनसीआर राजस्थान के रेगीस्तान से आने वाली धूल भरी आंधियों से बचाव के लिए तैयार नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि प्राकृतिक बैरियर के रूप में खड़ी अरावली पर्वतमाला को लगातार घायल किया जा रहा है और मौजूदा परिस्थितियों में इसके संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मई माह की शुरूआत में जब हरियाणा सहित कई राज्यों में धूल भरी आंधियों से जानमाल का भारी नुकसान हुआ, तब दिल्ली एनसीआर को इससे सबक लेने की जरूरत है।

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    बरसात कराने में भी सहायक

    पर्यावरणविद् मानते हैं कि अरावली की हरियाली न सिर्फ रेगीस्तान की धूल भरी आंधियां रोकती है बल्कि बरसात कराने में भी सहायक रहती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अरावली में खनन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है मगर इसके सार्थक परिणाम तभी सामने आएंगे जब अरावली में हरियाली के लिए विशेष प्रयास हों।

    अरावली में खनन पर 1992 में लगा प्रतिबंध 2003 में आंशिक सार्थक साबित हुआ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 7 मई 1992 को एक अधिसूचना जारी कर अरावली में खनन और निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था मगर वन विभाग की मंजूरी के चलते यहां कुछ क्षेत्रों में खनन और निर्माण भी होता रहा। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के अस्तित्व के प्रति चिंता 2003 में तब उजागर हुई जब पर्यावरणविद् एमसी महता द्वारा दिल्ली एनसीआर के भविष्य के लिए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई।

    अवैध खनन थमा नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका के बाद से ही अरावली में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया और वन विभाग को इसके संरक्षण का जिम्मा दिया हुआ है। हालांकि इसके बावजूद भी अरावली क्षेत्र में अवैध खनन थमा नहीं है। पिछले एक साल में पुलिस ने अरावली में 35 अवैध खनन के मामले दर्ज किए हैं। इसके अलावा पुलिस की नजर से इतर अरावली में जो खनन होता है उसके निशान जगह-जगह देखने को मिलते हैं।

    अवैध खनन ने बनाया प्राकृतिक असंतुलन

    पर्यावरणविदों का कहना है कि नेपाल में आया भूकंप भी प्राकृतिक असंतुलन का परिणाम था। अरावली से अवैज्ञानिक ढंग से लाखों टन पत्थर निकालकर खनन माफिया ने अपनी जेबें तो भरीं मगर कभी उसके संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया। परिणामस्वरूप अरावली में बसे जीव-जंतुओं से लेकर प्राकृतिक संपदा भी नष्ट हुई।पत्थर खनन के लिए भी तय मापदंड था कि जहां से जितना पत्थर निकाला जाए वहां मिट्टी से इसकी भरपाई की जाए मगर अब घायल अरावली में 150 फीट गहरे गड्ढे दिखाई देते हैं।

    अंधड़ रोकने का प्राकृतिक बैरियर है अरावली

    सेव अरावली संस्था के प्रवक्ता जीतेंद्र भड़ाना कहते हैं कि राजस्थान का अलवर जिला गुरुग्राम से सटा है। ऐसे में यदि रेगीस्तान की धूल भरी आंधियों को रोकने के लिए अरावली पर्वतमाला जैसा प्राकृतिक बैरियर न हो तो पूरे दिल्ली एनसीआर का बचाव मुश्किल है। हमारी संस्था यही बात सरकारों को समझाने का प्रयास कर रही है। हमने अरावली को घायल करने के हर प्रयास को हतोत्साहित किया है। अन्यथा पत्थर खनन माफिया अरावली का सीना चीरने को तैयार बैठा है। 

    अरावली की पहाड़ियों का संरक्षण जरूरी

    केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सेवानिवृत्त (अतिरिक्त निदेशक) डॉ.एस.के.त्यागी का कहना है कि पिछले दो दिनों के अंतराल में जो तेज आंधी राजस्थान सहित कुछ अन्य प्रदेशों में आई हैं, इनके कुछ अलग कारण हैं मगर यह जरूर है कि राजस्थान की तरफ से आने वाली धूल भरी आंधियों का प्रभाव कम करने में अरावली पर्वतमाला का बड़ा योगदान है। यदि राजस्थान के रेगीस्तान की धूल भरी आंधियों के सामने अरावली पर्वतमाला और इसकी हरियाली का प्राकृतिक बैरियर न हो तो इसका असर दिल्ली एनसीआर पर काफी भयानक हो सकता है, इसलिए अरावली की पहाड़ियों का संरक्षण जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली एनसीआर की आबोहवा के संरक्षण के लिए अरावली में खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया है।

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