Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या AI की मदद से दिल्ली के प्रदूषण पर लग जाएगी लगाम? द्वारका में पायलट प्रोजेक्ट शुरू

    Updated: Wed, 16 Jul 2025 10:51 PM (IST)

    दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग किया जाएगा। एआई की मदद से प्रदूषण के कारणों का पता लगाकर नियंत्रण के उपाय किए जाएंगे। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर द्वारका में ट्रायल शुरू हो गया है जिसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी शुरू किया जाएगा। इसके लिए दिल्ली में 190 सेंसर बॉक्स लगाए जाएंगे जो प्रदूषण की निगरानी करेंगे।

    Hero Image
    अब एआई की मदद से निकलेगा दिल्ली के वायु प्रदूषण का समाधान। फाइल फोटो

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। नासूर बन चुके दिल्ली के वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) की मदद ली जाएगी। एआइ से दिल्ली के अलग- अलग हिस्सों में प्रदूषण के कारकों का पता लगाया जाएगा और

    फिर उसी के अनुरूप प्रदूषण नियंत्रण के लिए उपाय किए जाएंगे। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर द्वारका में ट्रायल शुरू कर दिया गया है। इसके बाद आनंद विहार, पंजाबी बाग व बवाना में ट्रायल किया जाएगा।

    केंद्र सरकार के सेंटर फॉर एक्सीलेंस फार एआइ इन सस्टेनेबल सिटीज से मिले आर्थिक सहयोग के आधार पर आईआईटी कानपुर का ऐरावत रिसर्च फाउंडेशन इस पूरे प्रोजेक्ट को संभाल रहा है।

    जानकारी के अनुसार फिलहाल दिल्ली में प्रदूषण की निगरानी के लिए 40 एयर क्वालिटी मानिटरिंग स्टेशन लगे हुए हैं। दिल्ली का क्षेत्रफल 1483 वर्ग किमी है। इस हिसाब से एक स्टेशन लगभग 37 वर्ग किमी क्षेत्र को कवर करता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    फाउंडेशन अब इस दिशा में 190 सेंसर बाक्स लगाएगा। यह बॉक्स दिल्ली के अलग अलग हिस्सों में लगेंगे और हर बाक्स के हिस्से में तकरीबन आठ वर्ग किमी का क्षेत्र आएगा। इस तरह ये सेंसर अधिक समीपता से किसी भी क्षेत्र के प्रदूषण की निगरानी कर पाएंगे।

    40 सेंसर बाक्स के लिए टेंडर हो चुका है, जो लगभग एक से डेढ़ महीने में लगाए जाएंगे। इसके बाद फिर 150 सेंसर बाक्स का टेंडर किया जाएगा। कोशिश की जा रही है कि जाड़े के प्रदूषण का चरम आने से पहले सभी सेंसर लगा दिए जाएं।

    फिलहाल एआइ तकनीक से लैस एक मोबाइल एयर क्वालिटी मानिटरिंग लैब वैन द्वारका में खड़ी है और वहां पर प्रदूषण के कारणों की निगरानी कर रही है। यहां से वैन तीन चार अलग अलग क्षेत्र में जाएगी। हर जगह वैन 10 से 12 दिन तक रहेगी।

    यही मोबाइल वैन सेंसर बाक्स को कैलीब्रेट करेगी ताकि वह संबंधित लोकेशन पर पीएम 2.5, गैसें, उमस, तापमान सहित अन्य बिंदुओं पर सोर्स मैपिंग की जा सके। सेंसर बाक्स के डेटा का विश्लेषण करने के लिए एक डेटा सर्वर बनाया जाएगा।

    बताया जाता है कि जहां पर वायु प्रदूषण के जिन कारकों की अधिकता होगी, वहां पर उसी के अनुरूप कदम उठाए जाएंगे। भविष्य में ग्रेप के नियम भी इसी हिसाब से लागू किए जाएंगे।

    मतलब, ग्रेप के नियम पूरी दिल्ली में समान नहीं होंगे। फाउंडेशन को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की भी स्वीकृति मिल गई है।

    एआइ आधारित अनुसंधान, कम लागत वाले सेंसर नेटवर्क, एयरशेड विश्लेषण, रात्रिकालीन स्माग की पहचान, पूर्वानुमान प्रणाली और एआइ-सक्षम निर्णय समर्थन प्रणाली जैसे पहलुओं को प्रस्तुत किया जाएगा।

    दिल्ली के लिए यह क्यों जरूरी

    स्केल और सूक्ष्मता : हजारों सेंसर और एआइ तकनीकें पहले से कहीं ज्यादा गहराई से डेटा जुटाती हैं– जैसे सड़क किनारे के धुएं से लेकर निर्माण स्थल की धूल तक।

    नीति में त्वरित निर्णय : रीयल टाइम डेटा और पूर्वानुमान नीति-निर्माताओं को तेज़ और सटीक निर्णय लेने में मदद करता है – जैसे यातायात नियंत्रण, उद्योगों पर स्थानीय प्रतिबंध या धूल नियंत्रण उपाय।

    जनभागीदारी: सूचनाओं की पहुंच बढ़ाकर नागरिकों को सूचित और ज़िम्मेदार निर्णय लेने की क्षमता मिलती है। --

    एक एयर क्वालिटी मानिटरिंग स्टेशन करीब एक करोड़ का लगता है जबकि सेंसर बाक्स साढ़े तीन लाख रुपये में लग जाता है। यह अधिक बारीकी से प्रदूषकों की निगरानी करता है। सस्टेनेबल सिटीज प्रोजेक्ट के लिए एआइ की मदद भी बहुत जरूरी है। दिल्ली का सालाना एक्यूआई जो अभी 250 से 300 के बीच है, उसे 2030 तक 60 से 75 तक लाना है। आइबीएम से समझौता कर रियल टाइम डेशबोर्ड भी तैयार करवाया जाएगा ताकि जनता को शहर के वायु प्रदूषण की जानकारी मिल सके।

    प्रो. एस एन त्रिपाठी, प्रोजेक्ट हेड, सेंटर फार एक्सीलेंस फार एआइ इन सस्टेनेबल सिटीज, केंद्र सरकार

    यह भी पढ़ें- Weather Updates: दिल्ली-NCR में आज भी बरसे बादल, बारिश को लेकर IMD ने दिया बड़ा अपडेट

    comedy show banner
    comedy show banner