JNU में सावरकर और शिवाजी की तस्वीर हटाने पर विवाद, एबीवीपी ने लगाया अपमान करने का आरोप
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एबीवीपी की ओर से लगाई गईं वीर सावरकर और शिवाजी महाराज की तस्वीरों को वामपंथी संगठनों द्वारा हटाने पर विवाद छिड़ गया है। एबीवीपी ने इसे राष्ट्रीय विभूतियों का अपमान बताया है जबकि जेएनयूएसयू का कहना है कि तस्वीरों को सम्मानपूर्वक टेबल पर रखा गया था।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) कार्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की ओर से लगााई गई तस्वीरों को वाम संगठनों ने अपने कार्यक्रम के दौरान हटा दिया। अब इस पर हंगामा शुरू हो गया है।
एबीवीपी ने देशी की विभूतियों का अपमान करने का आरोप वाम संगठनों पर लगाया है। जेएनयूएसयू का कहना है कि उन्होंने तस्वीरों को सम्मान के साथ टेबल पर रखा था। कोई तोड़फोड़ या अपमान नहीं किया गया है।
जेएनयूएसयू कार्यालय में एबीवीपी के सदस्य और संयुक्त सचिव वैभव मीणा की ओर से पिछले दिनों यहां वीर सावरकर की तस्वीर लगाई गई थी।
इसके अलावा यहां अहिल्याबाई होल्कर, स्वामी विवेकानंद और छत्रपति शिवाजी तस्वीरें लगी होने की बात एबीवीपी ने कही है।
वाम छात्र संगठनों ने तस्वीरों को क्षतिग्रस्त किया है: एबीवीपी
एबीवीपी ने कहा है कि वाम छात्र संगठनों ने तस्वीरों को क्षतिग्रस्त किया है। यह निंदनीय है। यह कार्य एक पूर्वनियोजित, कायरतापूर्ण और असहिष्णु मानसिकता का प्रतीक है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
एबीवीपी इसे सिर्फ तस्वीरों को नुकसान पहुंचाने का कार्य नहीं मानती, बल्कि यह राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर, विचार और आत्मगौरव पर एक सीधा प्रहार है।
जेएनयू इकाई अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने कहा, छात्रसंघ कार्यालय केवल राजनीतिक विचारधारा का मंच नहीं है, बल्कि यह विश्वविद्यालय के छात्र समुदाय की विविधता और समावेशी दृष्टिकोण का प्रतीक होना चाहिए।
तस्वीरों को मेज पर रखा, कोई तोड़फोड़ नहीं की: जेएनयूएसयू अध्यक्ष
उधर, जेएनयूएसयू अध्यक्ष नितीश कुमार ने कहा, उनका एक कार्यक्रम था। पीछे तस्वीरें आ रहीं थीं, इसलिए इन्हें टेबल पर रखा गया था। कोई तोड़फोड नहीं की गई।
हमनें अंबेडकर, फुले और पूर्व अध्यक्ष चंदू की तस्वीर लगाई थी। वैसे जेएनयूएसयू काउंसिल में प्रस्ताव पास होने के बाद ही कोई तस्वीर कार्यालय में लगाई जा सकती है। लेकिन, ऐसा कुछ एबीवीपी ने नहीं किया। शिवाजी की तस्वीर वहां थी ही नहीं, तोड़फोड़ के आरोप बेबुनियाद हैं।

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