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    दिल्ली चुनाव में हार के 7 महीने बाद एक्टिव हुई AAP, भाजपा को काउंटर करने के लिए बना रही खास रणनीति

    Updated: Mon, 11 Aug 2025 09:03 PM (IST)

    दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद आम आदमी पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटी है। इसके लिए कार्यकर्ताओं से सुझाव मांगे जा रहे हैं। हर जिले में मासिक बैठकें हो रही हैं जहां प्रदेश उपाध्यक्ष और जिलाध्यक्ष कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि संगठन को मजबूत करने के लिए उनका सम्मान जरूरी है क्योंकि सत्ता में आने के बाद उनकी उपेक्षा हुई है।

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    दिल्ली विधानसभा में मिली हार के सात माह बाद अब आप बढ़ा रही सक्रियता।

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के सात माह बाद अब आप हार के इस तनाव से उबरने की कोशिश बढ़ा रही है। इसी कड़ी में दिल्ली में संगठन को मजबूती देने के लिए आप कार्यकर्ताओं से संवाद कर सुझाव ले रही है। इसे लेकर रविवार को दिल्ली के हर ज़िले में ज़िला स्तर मासिक बैठकें हुईं।

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    प्रदेश उपाध्यक्षों और जिला अध्यक्षों ने सभी विधानसभा अध्यक्षों व कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया। आप ने कहा कि सुझावों को शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचाया जाएगा, ताकि संगठन की मजबूती के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि यह पहली बार हुआ है कि बैठकें अधिक सक्रियता के साथ आयोजित की गई हैं।

    दरअसल, पिछले तीन महीनों से आम आदमी पार्टी ने संगठन के अंदर अलग-अलग मासिक बैठकों की शुरुआत की है। हर महीने के पहले रविवार विधानसभा स्तर पर बैठक होती है हर महीने के दूसरे रविवार को जिला स्तर पर बैठक होती है। इसी कड़ी में अगस्त में दूसरे रविवार को दिल्ली के सभी जिलों में जिला स्तर की बैठक हुई।

    इसी तरह आप के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने रविवार को तीन अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के अंदर कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया। इन बैठकों में कार्यकर्ताओं से पूछा जा रहा है कि वे पार्टी के अंदर संगठन को मजबूत करने के लिए क्या-क्या सुझाव देना चाहते हैं। इस दौरान कार्यकर्ताओं की तरफ से आए सभी सुझावों को लिखा जा रहा है।

    सूत्रों की मानें तो इन बैठकों में कई कार्यकर्ता यही सुझाव दे रहे हैं कि संगठन को मजबूत करने के लिए सबसे अधिक जरूरी है कि कार्यकर्ता को पूरा सम्मान मिले। कार्यकर्ताओं का कहना है कि दिल्ली की सत्ता में आने पर उनकी उपेक्षा शुरू हो गई थी, सरकार के दूसरे कार्यकाल में पुराने कार्यकर्ताअों का भी सम्मान बहुत कम हो गया था।

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