Delhi Riots: कपिल मिश्रा को गलत तरीके से फंसाने की रची गई थी साजिश: दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया
दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। पुलिस ने कपिल मिश्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जांच से पता चला कि वास्तव में कपिल मिश्रा को गलत तरीके से फंसाने की साजिश रची गई थी।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राउज एवेन्यू स्थित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) की अदालत में फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े एक मामले पर सुनवाई हुई। इस दौरान अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने कानून मंंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
अदालत ने 24 मार्च के लिए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।मामले में सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कपिल मिश्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की याचिका का विरोध करते हुए अदालत को बताया कि जांच से पता चला कि वास्तव में कपिल मिश्रा को गलत तरीके से फंसाने की साजिश रची गई थी और उन्हें हिंसा भड़काने वाली भीड़ का नेतृत्व करने वाले के तौर पर दिखाने के रूप में चित्रित किया गया था।
कपिल मिश्रा की भूमिका की पहले ही हो चुकी जांच-पुलिस
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दलील दी कि दंगों के पीछे की बड़ी साजिश के संबंध में कपिल मिश्रा की भूमिका की पहले ही जांच की जा चुकी है। उन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में, जिसमें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप शामिल हैं, जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और अन्य छात्र कार्यकर्ताओं के नाम हैं।
प्रसाद ने तर्क दिया कि दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (डीपीएसजी) की चैट से संकेत मिलता है कि 15 और 17 फरवरी, 2020 की शुरुआत में ही चक्का जाम (सड़क नाकाबंदी) की योजना बनाई जा रही थी। उन्होंने तर्क दिया कि जांच से पता चलता है कि कपिल मिश्रा पर हिंसा शुरू करने वाली भीड़ का नेतृत्व करने का आरोप लगाने की योजना बनाई गई थी।
अधिवक्ता ने दलील दी कि कपिल मिश्रा की संलिप्तता की विशेष सेल द्वारा गहन जांच की गई थी और यह निराधार पाया गया था। घटनाओं में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
यमुना विहार निवासी मोहम्मद इलियास द्वारा अगस्त 2024 में दायर आवेदन में दयालपुर पुलिस स्टेशन के तत्कालीन स्टेशन हाउस आफिसर (एसएचओ), राज्य के कानून मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कपिल मिश्रा और तीन भाजपा नेताओं मुस्तफाबाद विधायक मोहन सिंह बिष्ट, और पूर्व विधायक जगदीश प्रधान और सतपाल संसद सहित पांच अन्य के खिलाफ 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में उनकी संलिप्तता को लेकर एफआईआर की मांग की गई थी।
अधिवक्ता महमूद प्राचा ने कपिल मिश्रा के खिलाफ दी ये दलील
इलियास की ओर से पेश अधिवक्ता महमूद प्राचा ने दलील दी कि 23 फरवरी, 2020 को उन्होंने कपिल मिश्रा और उनके सहयोगियों को कर्दमपुरी में एक सड़क को अवरुद्ध करते और रेहड़ी-पटरी वालों की गाड़ियों को नष्ट करते देखा।
उन्होंने दलील दी कि तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (उत्तर-पूर्व) और दिल्ली पुलिस के अन्य अधिकारी कपिल मिश्रा के बगल में खड़े थे और प्रदर्शनकारियों को क्षेत्र खाली करने या परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहे थे।
अधिवक्ता ने अगले तीन दिनों में तीन अलग-अलग घटनाओं का विवरण दिया। अधिवक्ता ने कहा कि कपिल मिश्रा, दयालपुर एसएचओ, प्रधान, बिष्ट और संसद के साथ मिलकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मस्जिदों में तोड़फोड़ कर रहे थे।
यह भी पढ़ें: Delhi Riots: 2020 दिल्ली दंगा कोई संयोग नहीं, भारत विरोधी ताकतों की सोची समझी थी साजिश
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।