पर्यावरण संरक्षण में जुटे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 75 रिटायर्ड वैज्ञानिक
सीपीसीबी से सेवानिवृत्त 75 वैज्ञानिक और अधिकारी सीपीसीबी एलुमनाई एसोसिएशन के बैनर तले पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। जेब से ढाई-ढाई हजार रुपये सालाना सदस्यता शुल्क देकर ये लोग बीच-बीच में बैठकें और वेबिनार आयोजित कर पर्यावरण से जुड़े मुद्दे उठाते हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में दशकों नौकरी करते हुए पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाते रहे वैज्ञानिक-अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद अब धरती बचाने के यज्ञ में अपनी दूसरी पारी की आहुति दे रहे हैं। फर्क बस यही है कि पहले सरकारी बंदिशें उनके हाथ बांध देती थीं, जबकि अब वे अपने अनुभव और ज्ञान का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले उन्हें इस कार्य के लिए सरकार से मोटी तनख्वाह मिलती थी, जबकि अब खुद की जेब से पैसे खर्च कर वे पर्यावरण बचाने के काम में जुटे हैं। सीपीसीबी से सेवानिवृत्त 75 वैज्ञानिक और अधिकारी सीपीसीबी एलुमनाई एसोसिएशन के बैनर तले पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। जेब से ढाई-ढाई हजार रुपये सालाना सदस्यता शुल्क देकर ये लोग बीच-बीच में बैठकें और वेबिनार आयोजित कर पर्यावरण से जुड़े मुद्दे उठाते हैं और उनपर सुझाव एवं आपत्तियों सहित एक सटीक विश्लेषण सरकार सहित संबंधित विभागों को भेजते हैं।
हाल ही में इन्होंने एन्वायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट (ईआइए) को लेकर भी वेबिनार किया और उसकी रिपोर्ट तैयार की। इसमें विस्तार से बताया गया है कि विकास कार्यो के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने के लिए 2006 में जो नियम बनाए गए थे, उनमें 2020 के प्रस्तावित संशोधन कितना एवं कैसा प्रभाव डालेंगे। इससे पूर्व इन्होंने इलेक्टि्रक वाहनों के फायदे-नुकसान और इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर एक न्यूजलेटर तैयार किया था। लाकडाउन के दौरान दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देशभर में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में जो सुधार हुआ, उस पर भी सरकारी संगठनों ने तो केवल रिपोर्ट तैयार कर फाइल का हिस्सा बना लिया, लेकिन एलुमनाई एसोसिएशन ने सुधार को बरकरार रखने के सुझावों सहित एक न्यूजलेटर भी तैयार किया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भी इस न्यूज लेटर और एसोसिएशन के प्रयासों की प्रशंसा की है। यह न्यूजलेटर देश भर के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, केंद्र एवं राज्य सरकारों व पर्यावरण संस्थानों को भेजा गया है।
-डा. एस के त्यागी (पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी) ने बताया कि पर्यावरण सुधार के लिए बनने वाली नीतियां व्यावहारिक होनी चाहिए। ये नीतियां फाइलों का हिस्सा बनने के लिए नहीं, बल्कि हवा और पानी की बेहतरी के लिए होनी चाहिए।
डॉ. पारितोष त्यागी (पूर्व चेयरमैन, सीपीसीबी) का कहना है कि विकास का पैमाना जीवन की गुणवत्ता और आमजन की खुशी से मापा जाना चाहिए। कार्य-योजनाएं कागजी नहीं, कारगर होनी चाहिए।
डॉ. बी सेनगुप्ता (पूर्व सदस्य सचिव, सीपीसीबी) के मुताबिक, कोरोना काल में हमें वायु प्रदूषण कम करने के साथ-साथ प्रदूषित जल की रिसाइकि¨लग पर भी ध्यान देना चाहिए। यह घरेलू, व्यावसायिक और औद्योगिक तीनों स्तरों पर आवश्यक है।
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