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    तैराकी खुदा की सेवा से कम नहीं, लहरों से लड़ना सिखा रहे हैं 50 साल के जमां

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Wed, 02 Aug 2017 08:41 PM (IST)

    50 साल के जमां 22 साल से लोगों को तैराकी का नि:शुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनके शार्गिदों में पांच साल के मासूम अरीव से लेकर 60 साल के पादरी तक हैं।

    तैराकी खुदा की सेवा से कम नहीं, लहरों से लड़ना सिखा रहे हैं 50 साल के जमां

    नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...। यह पुरानी दिल्ली के नूर उज जमां के जोशीले शब्द हैं, जिनके दम पर दो हजार से अधिक लोग लहरों पर विजय पाकर अब उससे अठखेलियां खेल रहे हैं। 50 साल के जमां 22 साल से लोगों को तैराकी का नि:शुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनके शार्गिदों में पांच साल के मासूम अरीव से लेकर 60 साल के पादरी तक हैं।

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    तैराकी खुदा की सेवा से कम नहीं 

    नूर कहते हैं कि तैराकी मात्र पानी में ही रोमांच नहीं देती, बल्कि जीवन की लहरों से लड़ने का भी हौसला भी देती है। यह देखकर अच्छा लगता है कि उनसे तैराकी सीखे लोग जिदंगी को भी जिंदादिली से जी रहे हैं। एक दुर्घटना के कारण दोनों घुटनों में हमेशा दर्द लेकर साथ चलने वाले जमां के लिए तैराकी अब उतनी आसान नहीं है। पकी लंबी दाढ़ी भी अब उम्र का हिसाब देने लगी है, लेकिन धुन के पक्के जमां के लिए तैराकी खुदा की सेवा से कम नहीं है।

    लहरों से जीतने का हौसला

    नमाज के बाद रोज उनकी सुबह किसी बावली या स्विमिंग पूल में होती है। और उनके साथ होते हैं वे लोग जिन्हें पानी में उतरने में डर लगता है। वह हाथ मजबूती से पकड़कर उन्हें लहरों से जीतने का हौसला देते हैं। फिर क्या, यही हौसला अनाड़ियों को बटर फ्लाई, फ्री स्टाइल, ब्रेस्ट स्टॉक, खड़ी तैराकी जैसी विधाओं में पारंगत बना देता है।

    तैराकी पिता से विरासत में मिली

    तुर्कमान गेट इलाके में रहने वाले नूर उज जमां को तैराकी पिता से विरासत में मिली। वह याद कर बताते हैं कि कोई पांच साल के रहे होंगे जब उनके पहलवान पिता उग्रसेन की बावली में तैरने के लिए उतार देते थे। थोड़े डर के बाद लहरों से खेलना उन्हें अच्छा लगने लगा। फिर निजामुद्दीन की बावली, नेशनल स्टेडियम, तालकटोरा स्टेडियम, हुमायूं का मकबरा और टाउन हाल के स्वीमिंग पूल में अठखेलियां करने लगे।

    लड़कियों के साथ बुजुर्ग भी तैराकी में रुचि दिखा रहे हैं

    नूर के अनुसार वर्ष 1995 में उन्हें लगा कि वह लोगों को स्वस्थ्य रहने के साथ उनकी जिदंगी सुरक्षित रखने में कुछ योगदान दे सकते हैं। इस तरह उनके नि:शुल्क तैराकी सिखाने का सफर शुरू हुआ। उन्हें खास तौर पर यह देखकर खुशी होती है कि लड़कियों के साथ बुजुर्ग भी तैराकी में रुचि दिखा रहे हैं। 

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