1984 Anti Sikh Riots: पांच सिखों की हत्या के मामले में दोबारा होगी पूरी सुनवाई, खामियां मिलने पर हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में पुन सुनवाई का आदेश दिया है जिसमें राज नगर में पांच सिखों की हत्या हुई थी। अदालत ने जांच की कमियों को उजागर करते हुए ट्रायल कोर्ट को रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण करने का निर्देश दिया। अदालत ने पाया कि एजेंसी ने उचित प्रयास नहीं किए और ट्रायल कोर्ट ने मामलों पर ठीक से विचार नहीं किया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान राज नगर में पांच सिखों की हत्या जुड़े एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दोबारा ट्रायल का आदेश दिया है।
वहीं, तीन मामलों की जांच की कमियों के साथ ही सुनवाई की खामियों को उजागर करते हुए अदालत ने मामलों के रिकार्ड का पुनर्निर्माण करने का ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है।
ट्रायल कोर्ट के निर्णय को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि रिकार्ड पर मौजूद सामग्री से प्रथमदृष्टया जांच और मुकदमों के संचालन में कई कमियां सामने आई हैं।
अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की ओर से पारित फैसले को प्रथमदृष्टया पढ़ने से पता चलता है कि मामलों पर ठीक से विचार नहीं किया गया है।
अदालत ने आरोपित रामजी लाल शर्मा के खिलाफ फिर से मुकदमा चलाने और एक अन्य आरोपित बलवान सिंह खोखर के खिलाफ तीन मामलों में रिकार्ड के पुनर्निर्माण का आदेश दिया है।
पीठ ने 28 मई 1986 को आरोपितों को बरी करने ट्रायल कोर्ट के निर्णय निरस्त कर पुनः सुनवाई के लिए मामला ट्रायल कोर्ट वापस भेज दिया।
साथ ही सीबीआई से प्राथमिकता के आधार पर शीघ्रता से जांच पूरी करने का आदेश दिया। वहीं, दिल्ली पुलिस आगे की जांच के लिए केस फाइलें सीबीआई को सौंपने का आदेश भी दिया।
शिकायत में देरी के आधार पर आरोपितों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट स्पष्ट रूप से उस अनिश्चित स्थिति और सांप्रदायिक तनाव को ध्यान में रखने में विफल रही।
अदालत ने गौर किया कि शिकायतकर्ता स्वर्ण कौर के बयान से स्पष्ट है कि एक नवंबर 1984 के हमले में आखों के सामने पति व घर का जलाए जाने के बाद उन्हें अपने बच्चों के साथ राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी। इसके बाद राहत शिविर से लिखित शिकायत 15 नवंबर 1984 को पुलिस थाना दिल्ली छावनी को दी गई थी।
संदेह के घेरे में रही उचित व गहन जांच
पीठ ने कहा कि गंभीर प्रश्न यह है कि क्या जांच एजेंसी द्वारा वर्तमान मामले में उचित और गहन जांच की गई थी। तथ्यों से पता चलता है कि जांच के दौरान मृतक के बच्चों, पड़ोसियों सहित अन्य स्वाभाविक गवाहों को शामिल करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए थे।
घर जलाए जाने के बाद शिकायतकर्ताओं को शरण देने वालों से भी जांच के दौरान पूछताछ नहीं की गई। पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट भी यह सुनिश्चित करने में विफल रहा कि जांच में खामियों को दूर कर आगे की जांच के लिए उचित निर्देश दिए जाएं।
पीठ ने कहा कि अदालत का मानना है कि कार्यवाही जल्दबाजी में की गई है। पीठ ने कहा कि उक्त तथ्यों के निष्कर्ष में ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के निर्णय को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
जांच अधिकारियों से नहीं जुटाए अहम तथ्य
अदालत ने मामले की जांच करने वाले जांच अधिकारी एसआई एके सक्सेना के बयान पर गौर किया। 26 फरवरी 1985 से मामले के जांच अधिकारी के रूप में कार्य करने वाले एके सक्सेना ने अपने बयान में कहा कि शिकायतकर्ता के बगल में रहने वाले ठाकुर नाम के व्यक्ति से उसने कोई पूछताछ नहीं की।
वहीं, 23 फरवरी 1985 काे जांच अधिकारी के तौर पर कार्य करने वाले एसआइ अर्जुन सिंह ने अपने बयान में कहा था कि वह घटनास्थल वाले मोहल्ले के किसी भी व्यक्ति का बयान दर्ज नहीं किया।
यह है मामला
ये मामले पालम काॅलोनी के राज नगर पार्ट-एक इलाके में पांच सिखों की हत्या और राज नगर पार्ट-दो में एक गुरुद्वारे को जलाने से संबंधित हैं।
ये मामले दिल्ली कैंट पुलिस स्टेशन में दर्ज किए गए थे और 2017 में हाई कोर्ट इन मामलों को फिर से तब खोला था जब उसने पाया कि सभी आरोपितों को 1986 में ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था। इसके खिलाफ न तो दिल्ली पुलिस और न ही सीबीआई ने अपील दायर की थी।
इनमें से एक मामले में पूर्व सांसद सज्जन कुमार को बरी कर दिया गया था और सीबीआई ने इसके खिलाफ अपील की थी। अब मामले से जुड़े कई आरोपियों में से केवल दो ही जीवित हैं।
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