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    मेरे ताऊ को दंगाइयों ने जिंदा जला दिया था, पड़ोस में छिपकर बचाई थी जान; दंगे की कहानी याद कर रो पड़े लोग

    दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ आरोप तय करने का निर्देश दिया है। विशेष सीबीआई जज राकेश सियाल ने शुक्रवार को कहा कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। आज 40 साल बाद भी दंगे की कहानी याद कर लोग रोने लगते हैं।

    By Rishabh bajpai Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Sun, 01 Sep 2024 04:08 PM (IST)
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    40 पुराने दंगे की कहानी याद कर नम हो जाती हैं पीड़ितों की आंखे।

    जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली। 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे की कहानी जब लोग याद करते हैं तो आज भी उनकी आंखें आंसुओं से नम हो जाती हैं। दिल्ली के ख्याला में रहने वाली सिख दंगे से पीड़ित परमजीत कौर ने अपने ताऊ बखटू सिंह को खोया है।

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    उन्होंने बताया कि जब मैं आठ वर्ष की थी। सुबह का समय था। हमारे घर में सभी टीवी देख रहे थे। तभी टीवी के जरिए पता चला कि इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई है। फिर पता चला कि दंगा हो गया है और सिखों को मारा जा रहा है। मेरे पिता गुरुद्वारे के प्रधान थे तो वह मेरे ताऊ को साथ लेकर छह से सात लोग मंगोलपुरी थाने की ओर निकल गए।

    एसएचओ साहब ने दी छिपने की जगह

    इतने में ही मेरे ताऊ को दंगाइयों ने पकड़ लिया। बाकी सारे लोग जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर वहां से भागे, मेरे पापा उन्हें बचाने के लिए बढ़े, लेकिन साथ वाले उन्हें वहां से ले गए। देखते-देखते ही मेरे पिता के सामने ही ताऊ को दंगाइयों ने जिंदा जला दिया। इसके बाद सभी लोग आनन-फानन में थाने पहुंचे तो एसएचओ साहब ने छिपने के लिए जगह दी।

    दंगाइयों को पता चला कि सिख थाने में छुपे हैं तो उन्होंने थाना घेर लिया। इतने में ही थाने के अंदर खून से सना हुआ एक ट्रक पहुंचा। एचएसओ साहब ने तुरंत दिमाग लगाया और सभी सिखों को वहां से ट्रक में बैठने के लिए कहा। ताकि लगे कि यह सभी लोग मरे हुए हैं।

    इसके बाद एसएचओ ने उन दंगाइयों को समझाया तो वह वापस चले गए। फिर सभी सिखों को एक स्कूल में सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। इस तरह से घर के बाकी लोगों की जान बची। बखटू सिंह राजस्थान के रहने वाले थे और किसानी करते थे।

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    पड़ोसी के घर छिपकर बचाई थी जान

    पीड़ित परमकीत कौर बताती हैं कि हमारे घर पर जब दंगाइयों ने हमला किया तो मैं, मम्मी, बुआ और उनके बच्चे पड़ोसी के घर जाकर छुप गए थे। उस समय मैं तीसरी कक्षा में थी।उस दौरान हम छत पर थे तो मैंने धीरे से देखा कि एक ऑटो में तीन लोगों को दंगाइयों ने जिंदा जला दिया। मेरे पसीने छूट गए थे। आज भी वह समय याद करती हूं तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं।

    उन्होंने बताया कि दंगा करने वाले लोग हमारे घर का सामान तक लूटकर ले गए थे। तीन दिन तक यह सब चला उसके बाद आर्मी आई जब जाकर मामला शांत हुआ। फिर मैं उस स्कूल गई जहां पर हमारे पापा और उनके साथ गए अन्य लोग फंसे हुए थे।