नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के 9 आरोपी बरी, कोर्ट का लड़की से अंतरिम मुआवजा वसूलने का भी आदेश
रोहिणी जिला न्यायालय ने नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के आरोप में नौ लोगों को बरी कर दिया है। न्यायालय ने पीड़िता पर झूठे आरोप लगाने के कारण 3.75 लाख रुपये का मुआवजा वसूलने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि पीड़िता और उसकी मां के बयानों में विरोधाभास है और केवल संदेह के आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह पहला मामला है जहां पीड़ित पक्ष से मुआवजा राशि वसूली जाएगी।

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली। रोहिणी जिला न्यायालय ने नौ लोगों पर सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली नाबालिग लड़की से अंतरिम मुआवजा राशि (3.75 लाख रुपये) वसूलने का आदेश दिया है। साथ ही न्यायालय ने सभी नौ आरोपियों को बरी भी कर दिया है।
अपने फैसले में न्यायाधीश ने कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ। 'मात्र संदेह' के आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। पीड़िता और उसकी मां ने लगातार अपने बयान बदले हैं, और ये विरोधाभास इतने गंभीर हैं कि एक बयान दूसरे को नकार देता है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमित सहरावत ने सितंबर 2023 में नाबालिग लड़की के अपहरण और सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले की सुनवाई करते हुए हाल ही में अपना निर्णय दिया।
दिल्ली पुलिस ने एक महिला समेत नौ आरोपियों के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म, हमला करने, कपड़े उतारना, घर में जबरन घुसने, अपहरण और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम की धारा 4 (प्रवेशात्मक यौन हमला) आदि विभिन्न दंडात्मक प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
आरोपपत्र में कहा गया कि 25 सितंबर 2023 को लड़की का अपहरण करके आरोपी उसे गाजियाबाद ले गए और उसके साथ गलत काम किए। पीड़िता का परिवार मंदिर परिसर में रहता था और आरोपी मंदिर प्रबंधन के सदस्य थे।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि पीड़ित पक्ष की ओर से 23 सितंबर 2023 को पुलिस के आपातकालीन नंबर पर काॅल किया, लेकिन बाद में यह कहकर मामला सुलझा लिया कि यह मंदिर प्रबंधन और उनके बीच का विवाद था। क्योंकि, मंदिर प्रबंधन उन्हें संपत्ति खाली करने के लिए मजबूर कर रहा था।
इसके बाद चार अक्टूबर को लड़की की मां ने 15 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। जांच के दौरान पुलिस को इस बात के प्रमाण मिले कि कथित अपराध के समय कुछ आरोपी दिल्ली में मौजूद भी नहीं थे।
न्यायालय ने आठ महीने की देरी का जिक्र करते हुए कहा कि नए नामों के साथ एक नई शिकायत दर्ज कराई। पीड़िता और उसकी मां के बयानों लगातार बदलाव अविश्वसनीय बनाता है। न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के इस आरोप पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि सामूहिक बलात्कार और अन्य अपराधों की घटना पीड़िता की मां के मोबाइल फाेन पर रिकाॅर्ड की गई थी।
न्यायालय ने कहा कि जब डिवाइस को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया तो ऐसा कोई वीडियो नहीं मिला। अभियोजन पक्ष के मामले पर गंभीर संदेह हैं। न्यायालय ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि परिस्थितियां आरोपित पर गंभीर संदेह पैदा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं और यह केवल संदेह का मामला है।
यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि केवल संदेह के आधार पर आरोपी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ है, इसलिए दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के सचिव को पीड़िता से अंतरिम मुआवजा (3.75 लाख रुपये की राशि) की वसूली की कार्यवाही शुरू करने का भी निर्देश दिया।
आरोपी के वकील प्रदीप राणा का कहना है कि दूसरे पक्ष ने प्राॅपर्टी विवाद को सेटल करने के लिए झूठे आरोप लगाए थे। केस झूठा पाया गया, इसलिए न्यायालय ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया और साथ ही 3.75 लाख रुपये मुआवजा राशि लेने को कहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि न्यायालय ने पीड़ित पक्ष से मुआवजा राशि वसूली के आदेश दिए हों।

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