किंग एयरवेज केस में दिल्ली HC की दो टूक-पायलट भी श्रम कानून के तहत कर्मचारी, सभी अपीलें कीं खारिज
दिल्ली उच्च न्यायालय ने किंग एयरवेज मामले में स्पष्ट किया कि पायलट भी श्रम कानून के तहत कर्मचारी हैं। अदालत ने इस मामले से जुड़ी सभी अपीलों को खारिज क ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने किंग एयरवेज की सभी अपीलें खारिज करते हुए साफ शब्दों में कहा कि एयरलाइंस पायलट, चाहे वे पायलट-इन-कमांड ही क्यों न हों, औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत वर्कमैन (कर्मचारी) माने जाएंगे। अदालत ने कहा कि किसी कर्मचारी का ज्यादा वेतन, बड़ा पद या उड़ान के दौरान कमान संभालना, उसे श्रम कानूनों से बाहर नहीं करता।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने यह फैसला किंग एयरवेज और उसके पूर्व पायलटों के बीच चल रहे मुकदमे में सुनाया। एयरलाइन ने पायलटों को बकाया वेतन और अन्य भुगतान देने के आदेश को चुनौती दी थी।
क्या दी गई थी दलील?
कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के कर्मचारी होने का फैसला उसके काम की असल प्रकृति से होता है। पायलट का मुख्य काम विमान उड़ाना है, जो एक तकनीकी और कौशल आधारित जिम्मेदारी है। भले ही उड़ान के दौरान पायलट-इन-कमांड को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन वह न तो दफ्तर के कामकाज में और न ही कर्मचारियों के प्रशासनिक मामलों में कोई प्रबंधकीय या पर्यवेक्षी भूमिका निभाता है।
क्या कहा अदालत ने?
अदालत ने एयरलाइन की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि पायलटों का ऊंचा वेतन या सीनियर कमांडर का पद उन्हें वर्कमैन की श्रेणी से बाहर कर देता है। कोर्ट ने कहा कि वेतन की सीमा तभी मायने रखती है, जब यह साबित हो कि कर्मचारी वास्तव में सुपरवाइजरी (पर्यवेक्षण) का कार्य करता है, जो इस मामले में साबित नहीं हुआ।
बकाया वेतन के मामले में फैसला बरकरार
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि विमानन नियमों में जिस निगरानी या नियंत्रण की बात होती है, वह केवल उड़ान की सुरक्षा से जुड़ी होती है। इसे श्रम कानूनों में बताए गए प्रबंधन या सुपरविजन के बराबर नहीं माना जा सकता। बकाया वेतन के मामले में भी कोर्ट ने पायलटों के पक्ष में फैसला बरकरार रखा। अदालत ने माना कि पायलटों की नौकरी गलत तरीके से खत्म की गई थी। इसलिए उन्हें दोबारा सेवा में लेना, सेवा की निरंतरता देना और बकाया वेतन देना सही है।

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