जश्न-ए-रेख्ता में सूफियाना सुर और साहिर की जादुई दुनिया, जावेद अख्तर और शंकर महादेवन ने बांधा समां
जश्न-ए-रेख्ता में सूफियाना संगीत और साहिर लुधियानवी की रचनाओं का अद्भुत मिश्रण देखने को मिला। जावेद अख्तर और शंकर महादेवन ने अपनी शानदार प्रस्तुतियों ...और पढ़ें

सराय काले खां स्थित बांसेरा पार्क में प्रस्तुति देते गायक शंकर महादेवन व मंच पर उपस्थित जावेद अख्तर व गायिका गायिका प्रतिभा सिंह बघेल। जागरण
जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। संगीत, शायरी और सूफियाना अंदाज से सजी शाम में ऐसा जादुई माहौल बना, जिसे शब्दों में बांध पाना मुश्किल है। बांसेरा पार्क में तीन दिवसीय जश्न-ए-रेख्ता के आखिरी दिन का खास आकर्षण रहा ‘दिल अभी भरा नहीं’- साहिर की दुनिया में एक शाम।
जावेद अख्तर का अंदाज सबको भाया
इसमें मशहूर कवि व लेखक जावेद अख्तर ने अपने खास अंदाज में “अभी न जाओ छोड़कर…”, “लागा चुनरी में दाग…” और “ऐ मेरी जोहरा-जबीं…” जैसी अमर रचनाओं के पीछे के किस्से सुनाए, तो महफिल खाना कभी हंसी और कभी तालियों से गूंज उठा। वहीं प्रसिद्ध गायक शंकर महादेवन की दमदार आवाज और प्रतिभा सिंह बघेल की सूफियाना मिठास ने इन क्लासिक गीतों को अपने सुरों से सजाकर महफिल का रंग और गहरा किया।
सुनाए एक से बढ़कर एक किस्से
जावेद अख्तर ने किस्सा सुनाते हुए कहा कि गीत अक्सर परिस्थिति और किरदार के आधार पर लिखे जाते हैं लेकिन लोग अक्सर उनके बारे में कहते हैं ये क्या लिखा है। ऐसा ही एक गीत है जो अब आप सुनेंगे, इसी बात पर शंकर महादेवन ने क्लासिक धुन “सर जो तेरा चकराए” की शुरुआत की तो सभी ने पुराने जमाने की उस चंचलता को को फिर से महसूस किया।
इसके बाद “निगाहें मिलाने को जी चाहता है, दिल-ओ-जान लुटाने को जी चाहता है…” गीत पर उनकी आवाज में रोमांस की कशिश सुनाई दी। कार्यक्रम में जावेद अख्तर, शंकर महादेवन और प्रतिभा सिंह बघेल ने साहिर लुधियानवी को याद करते हुए ऐसा समां बांधा कि दर्शक कह उठे दिल वास्तव में अभी भरा नहीं।
सूफियाना संगीत संग स्वाद का भी हुआ जिक्र
रेख्ता के आखिरी दिन संगीत, कविता और सांस्कृतिक विरासत से सजे कई कार्यक्रम हुए जहां एक ओर रूहानियत का सुकून था, वहीं दूसरी ओर बालीवुड की धमक। जश्न की शुरुआत हुई ''उरूज-ए-फन'' के साथ, जिसमें फिक्र और फनकारी का खूबसूरत संगम दिखा।
इस दौरान मीनू बख्शी, रेने सिंह, विद्या शाह, मोहम्मद वकील, शहजान मुजीब और अल्तमश अली ने मिलकर एक ऐसा माहौल सजाया जिसमें सूफी संगीत और गजल का ठहराव एक साथ महसूस हुआ।
वहीं, पुष्पेश पंत, तराना हुसैन और दीपा सिंह ने हिंदुस्तानी खानपान की रवायत पर बात करते हुए स्वाद को संस्कृति से जोड़ दिया। किस्से, यादें और रेसिपियों से सजे इस सत्र ने खाने और संस्कृति पर दिलकश किस्से सुनाए गए।
नए कलाकारों ने भी खूब दिखाया हुनर
दोपहर में मंच सजाया नई पीढ़ी के शायरों ने ''यंग पोएट मुशायरा'' में। इसमें अब्बास कमर, आयशा अयूब, अली हैदर, अमीर हमजा, हिमांशी बाबरा, इब्राहिम अली जीशान, इमरान राशिद और सैयद अहमद ने शायरी के अलग अंदाज, अलग लहजे और नज्मों की खुशबू से श्रोताओं को प्रभावित किया। उधर, ''रूह-ए-मजरूह'' एक खास म्यूजिकल ड्रामा रहा जिसे सभी ने खूब सराहा। मजरूह सुल्तानपुरी के जीवन और गीतों पर आधारित यह म्यूजिकल ड्रामा उनकी शायरी, उनके दौर और उनके गीतों के सफर को बेहद खूबसूरती से पेश किया गया।
‘अब्बा और मैं : एक अनोखी दास्तां’ का हुआ विमोचन
जश्न ए रेख्ता कार्यक्रम में प्रसिद्ध लेखिका नीलिमा डालमिया की बहुचर्चित पुस्तक ‘अब्बा और मैं: एक अनोखी दास्तां’ का औपचारिक विमोचन भी किया गया। इस दौरान मंच पर उनके साथ संदीप भूतोड़िया और हुमा खलील ने मिलकर पुस्तक का अनावरण किया। इस मौके पर आयोजित विशेष चर्चा सत्र में नीलिमा डालमिया ने पुस्तक से जुड़े अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि यह किताब उनके दिल के बेहद करीब है, एक ऐसे रिश्ते को समर्पित, जो जीवन को गढ़ता, संवारता और भीतर से मजबूत बनाता है।

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