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    जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी से दिल्ली HC ने मांगा जवाब, प्रोफेसर की नियुक्ति का रिकार्ड पेश करने का आदेश

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 07:00 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय में प्रोफेसर सलीना के. बशीर की नियुक्ति से जुड़े सभी रिकॉर्ड पेश करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता ने उनकी नियुक्ति को यूजीसी और बीसीआई के नियमों का उल्लंघन बताया है। याचिका में कहा गया है कि प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए बशीर के पास पर्याप्त शोध प्रकाशन और शिक्षण अनुभव नहीं था। अदालत ने जामिया हमदर्द को 14 जनवरी, 2026 तक रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया है।

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    जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी से दिल्ली HC ने मांगा जवाब।



    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय में विधि के प्रोफेसर के रूप में डाॅ. सलीना के. बशीर की नियुक्ति से संबंधित संपूर्ण रिकार्ड पेश करने का दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया हमदर्द को निर्देश दिया है।

    याचिकाकर्ता मोहम्मद अशरफ जमाल की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने बगैर नोटिस जारी किए कहा कि 14 जनवरी 2026 को हाेने वाली अगली सुनवाई तक रिकार्ड पेश किए जाने चाहिए।

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    बशीर वर्तमान में जामिया हमदर्द में हमदर्द इंस्टीट्यूट आफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (एचआईएलएसआर) के डीन के रूप में कार्यरत हैं। बशीर की प्रोफेसर व डीन के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते हुए यह निर्देश जारी किया।

    मोहम्मद अशरफ जमाल की याचिका में कहा गया कि अक्टूबर 2021 में प्रोफेसर के रूप में बशीर की नियुक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियम, 2018 और बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआइ) के विधि शिक्षा नियम- 2008 का उल्लंघन है। यह भी कहा कि डीन के रूप में उनकी नियुक्ति शुरू से ही अमान्य है, क्योंकि यह उनके कथित रूप से अमान्य प्रोफेसर पद से उत्पन्न होती है।

    उन्होंने याचिका में तर्क दिया कि बशीर के पास यूजीसी-सूचीबद्ध पत्रिकाओं में आवश्यक 10 शोध प्रकाशन, न्यूनतम 120 शोध अंक और सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर या प्रोफेसर के रूप में 10 वर्षों का शिक्षण अनुभव नहीं है।

    सार्वजनिक रूप से उपलब्ध बशीर के सीवी का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने से पहले बशीर का यूजीसी-सूचीबद्ध पत्रिका में केवल एक प्रकाशन था और लगभग 1.5 वर्षों का सीमित शिक्षण अनुभव था।

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