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    लोकतांत्रिक प्रकिया को कमजाेर कर रही केंद्र सरकार..., 5 साल से चुनाव नहीं कराने पर दिल्ली HC ने लगाई फटकार

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 08:51 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने छावनी बोर्डों के चुनाव में देरी पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में निर्वाचित बोर्ड जरूरी हैं और सरकार धारा-13 के तहत बार-बार अधिसूचनाएं जारी कर रही है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है और याचिका को जनहित याचिका में बदल दिया है। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव कराने की मांग की है, जबकि सरकार ने देरी का कारण बताया है।

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। देश भर में छावनी बोर्डों के चुनाव पांच साल से ज्यादा समय से न कराने और शासन करने के लिए बार-बार अधिसूचनाएं जारी करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने फटकार लगाई है। संदीप तंवर की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने केंद्र सरकार के रवैये पर टिप्पणी की कि हम एक लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं और हमें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित छावनी बोर्डों की आवश्यकता है।

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    पीठ ने नोट किया कि कैंटोनमेंट अधिनियम-2006 की धारा-12 बोर्डों के गठन का प्रावधान करती है, लेकिन सरकार संविधान में बदलाव करने के लिए धारा-13 के तहत अधिसूचना जारी कर रही है, जबकि धारा- 13 के तहत कैंटोनमेंट बोर्ड के गठन में बदलाव करने की शक्ति का इस्तेमाल सिर्फ मिलिट्री ऑपरेशन या कैंटोनमेंट के एडमिनिस्ट्रेशन की स्थिति में ही किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि इन अधिसूचना का लगातार और बार-बार इस्तेमाल लोकतांत्रित प्रक्रिया को खत्म करता है। पीठ ने केंद्र सरकार के साथ-साथ डायरेक्टर जनरल डिफेंस एस्टेट्स (डीजीडीई) को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

    साथ ही कहा कि यह बताया जाए कि जब चुने गए बोर्डों के जरिए छावनी परिषद को काम करना चाहिए, तो धारा-13 के तहत अधिसूचना को बार-बार जारी करने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? साथ ही अदालत ने याचिका को जनहित याचिका में तब्दील करते हुए मामले की सुनवाई 11 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी।

    याचिकाकर्ता दिल्ली निवासी संदीप तंवर व आगरा कैंटोनमेंट निवासी योगेश कुमार ने याचिका दायर कर बोर्ड के चुनाव कराने के निर्देश देने की मांग की है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वकील अमन भल्ला ने तर्क दिया कि सरकार कैंटोनमेंट बोर्ड के संविधान में बदलाव की आड़ में दस साल से ज्यादा समय से चुनाव नहीं करा पाई है। इसमें यह भी कहा गया है कि अलग-अलग कैंटोनमेंट बोर्ड में सदस्यों को नामित करने में भी काफी देरी हुई है।

    वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए स्थायी वकील सत्य रंजन स्वैन ने कहा कि चुनावों में देरी इसलिए हुई है क्योंकि सरकार नगर निगम कानूनों और कैंटोनमेंट को एक जैसा बनाने के लिए कदम उठा रही है। यह भी कहा कि कुछ कैंटोनमेंट बोर्ड के सिविल एरिया को उनके आस-पास की नगर निगम में शामिल करने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है।

    उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को राज्य सरकारों के सामने उठाया गया है और इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है। इसके कारण सरकार कैंटोनमेंट एक्ट के धारा- 13 के तहत अधिसूचना जारी कर रही है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, कोर्ट ने सरकार को अपना जवाब फाइल करने का आदेश दिया।

    भारत में 60 से ज्यादा छावनी बोर्ड हैं और ये छावनी के रूप में नामित क्षेत्रों के नगरपालिका प्रशासन का प्रबंधन करते हैं। इन बोर्डों के सदस्यों के चुनाव के लिए आखिरी चुनाव जनवरी 2015 में हुए थे और उन सदस्यों का कार्यकाल 2020 में समाप्त हो गया।

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