एक्सिस बैंक केस में HC का फैसला- बैंक के गिरवी अधिकारों पर रोक लगाने के लिए नहीं हो सकता SC/ST Act का इस्तेमाल
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक्सिस बैंक के गिरवी अधिकारों को रोकने के लिए SC/ST एक्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य वंचित समुदायों की रक्षा करना है, न कि वित्तीय संस्थानों के वैध कार्यों में बाधा डालना। न्यायालय ने याचिकाकर्ता की शिकायत खारिज करते हुए कहा कि SC/ST एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लोगों की भूमि पर गलत कब्जे या बेदखली से संबंधित एससी/एसटी अधिनियम के प्रविधानों का इस्तेमाल किसी बैंक को उसके वैध गिरवी अधिकारों का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने यह टिप्पणी एक्सिस बैंक, उसके प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा शुरू की गई कार्यवाही पर रोक लगाते हुए की।
पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया एससी एसटी अधिनियम की धारा-तीन(एक)(एफ) और (जी) लागू नहीं होतीं क्योंकि याचिकाकर्ता के बंधक अधिकार के प्रयोग को रोकने के लिए इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(एफ) और (जी) के उल्लंघन का आरोप लगाने वाले एक व्यक्ति के आवेदन पर एससी-एसटी आयोग ने एक्सिस बैंक के एमडी और सीईओ को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया था।
उक्त धारा तीन (एक)(एफ) एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य की भूमि पर गलत तरीके से कब्जा करने या खेती करने पर दंड का प्रविधान करती है, जबकि धारा तीन (एक) (जी) एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य को उसकी भूमि या परिसर से गलत तरीके से बेदखल करने पर दंड का प्रविधान करती है।
यह मामला 2013 में एक्सिस बैंक द्वारा सूर्यदेव अप्लायंसेज लिमिटेड को स्वीकृत 16.69 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा से शुरू हुआ था, जो महाराष्ट्र के वसई में एक गिरवी रखी गई संपत्ति द्वारा सुरक्षित थी। उधारकर्ता द्वारा भुगतान न करने के बाद खाते को 2017 में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति घोषित कर दिया गया।
गिरवी रखी गई संपत्ति के स्वामित्व को लेकर बाद में हुए एक दीवानी विवाद के कारण एक व्यक्ति ने सी-एसटी आयोग का दरवाजा खटखटाया। मामले पर विचार करने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि आयोग के समक्ष लंबित कार्यवाही उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिकारियों को आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता के पीछे कोई तर्क दर्ज नहीं किया गया है। उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने मामले की सुनवाई पांच फरवरी 2026 के लिए स्थगित कर दी।
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