'स्वअर्जित संपत्ति से भी बहू को कानूनी प्रक्रिया के बिना नहीं निकाल सकते'; HC ने सास की याचिका की खारिज
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि सास अपनी स्वअर्जित संपत्ति से भी बहू को बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं निकाल सकती। न्यायमूर्ति गजेंद्र कुमार ने सास की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश दिया, जिसमें बहू को बेदखल करने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि बहू को बेदखली से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा, उसे नोटिस देना होगा और पक्ष रखने का अवसर देना होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। माता-पिता द्वारा बेटे को त्याग दिए जाने के बावजूद भी विवाह के तुरंत बाद घर में रहने वाली उसकी पत्नी साझा घर में रहने की हकदार है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना बहू को घर से बेदखल नहीं किया जा सकता। पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए महिला की सास द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया।
याचिका के अनुसार एक दशक से भी अधिक समय से चल रहा यह विवाद 2010 में महिला की याचिकाकर्ता के बेटे से शादी और उसके बाद संपत्ति पर अपने ससुराल वालों के साथ रहने के बाद उत्पन्न हुआ।
2011 में वैवाहिक संबंध खराब होने पर दोनों पक्षों के बीच कई दीवानी और आपराधिक मुकदमे चले।
याचिकाकर्ता सास ने तर्क दिया था कि यह संपत्ति उनके दिवंगत पति दलजीत सिंह की स्वअर्जित संपत्ति थी और इसलिए इसे घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत साझा घर नहीं माना जा सकता।
हालांकि, पीठ ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था के तहत याचिकाकर्ता सास पहली मंजिल पर और बहू भूतल पर रहती है और यही दोनों पक्षों के हितों में पर्याप्त संतुलन बनाती है।
यह भी पढ़ें- आवारा कुत्तों को हटाने का विरोध करने वालों को राहत, FIR रद करने की मांग पर दिल्ली HC ने दिया अहम आदेश
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।