DU का नया नियम क्यों बना नाराजगी की वजह? विश्वविद्यालय के शिक्षक और शोधकर्ता करने लगे वापस लेने की मांग
दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए एक नया नियम लागू किया गया है, जिससे उनमें नाराजगी है। अब उन्हें किसी भी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट् ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में हाल ही में शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए लागू किए गए एक नए नियम से शिक्षकों में नाराजगी और चिंता बढ़ गई है। इस नियम के तहत अब किसी भी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने या शोध पत्र प्रस्तुत करने से पहले शिक्षकों को विश्वविद्यालय की एक विशेष समिति से पूर्व अनुमति लेनी होगी।
शिक्षकों का कहना है कि यह नियम अकादमिक गतिविधियों पर निगरानी और नियंत्रण का एक नया तरीका है। नए नियम के अनुसार, किसी भी सम्मेलन में शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए शिक्षक को कम से कम दो महीने पहले अपने शोध पत्र का पूरा पाठ और सम्मेलन का विवरण विश्वविद्यालय को देना होगा।
इसके बाद विश्वविद्यालय की ओर से गठित समिति न केवल शोध पत्र की विषयवस्तु का मूल्यांकन करेगी, बल्कि सम्मेलन आयोजित करने वाली संस्था की साख भी परखेगी। समिति की संतुष्टि के बाद ही शिक्षक को सम्मेलन में भाग लेने की अनुमति मिलेगी।
शिक्षाविदों के अनुसार, इस तरह के नियमों का सबसे ज्यादा असर सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों पर पड़ेगा, जहां पढ़ाई और शोध सीधे समाज और राजनीति से जुड़े होते हैं। इससे आलोचनात्मक सोच और खुले विमर्श को नुकसान पहुंच सकता है।
शिक्षक संगठनों ने कहा है कि विश्वविद्यालयों का काम विचारों पर रोक लगाना नहीं, बल्कि चर्चा और स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देना है। उन्होंने इस नियम को वापस लेने की मांग की है और कहा है कि अगर ऐसे कदमों का विरोध नहीं हुआ, तो अन्य विश्वविद्यालयों में भी ऐसी व्यवस्था लागू हो सकती है।

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